गृह प्रबंधन के उद्देश्य
गृह प्रबन्ध का प्रमुख उद्देश्य है-
उपलब्ध पारिवारिक साधनों से पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति करना। गृह प्रबन्ध एक ऐसी मानसिक तथा बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें गृह सम्बन्धी उत्तरदायित्वों को निभाने हेतु परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ मिल-जुलकर कार्य करने पर बल दिया जाता है।
प्रबन्ध वास्तव में निर्णयों की श्रृंखला है जिसमें पारिवारिक साधनों का उपयोग पारिवारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है। गृह प्रबन्ध के निम्न उद्देश्य हैं-
1. परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति
परिवार के सभी सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना गृह प्रबन्ध का एक अति महत्वपूर्ण प्रथम उद्देश्य है। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति तो हर हाल में की जानी चाहिए। इसके साथ ही आरामदायक एवं कार्यक्षमता वृद्धि के साधनों की पूर्ति करना भी आवश्यक है। वर्तमान परिवर्तित परिवेश में, जिसे पहले विलासिता सम्बन्धी आवश्यकता समझा जाता था वह आज आवश्यक / आरामदायक आवश्यकता के अन्तर्गत आने लगा है जिसकी पूर्ति होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। तभी परिवार के सदस्यों की कार्यक्षमता और ज्ञानार्जन में वृद्धि हो सकेगी। उदाहरण के लिए, टी. वी., मोबाइल फोन, स्कूटर, कम्प्यूटर आदि विलासितापूर्ण आवश्यकता नहीं बल्कि यह कहीं-कहीं, विशेषकर शोध के क्षेत्रों में आवश्यक आवश्यकता है जिसके बिना ज्ञानार्जन और शोधकार्य सम्पन्न हो ही नहीं सकते।
भोजन न केवल भूख शान्त करने के लिए ग्रहण किया जाता है बल्कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को उसकी आयु, लिंग, कार्य तथा शारीरिक आवश्यकता के अनुसार संतुलित भोजन मिलना चाहिए, तभी परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य उत्तम बना रह सकेगा तथा उनमें कार्यक्षमता की वृद्धि हो सकेगी। रोगावस्था में आहार की स्थिति अलग होती है। छोटे बालकों के उचित शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पौष्टिक आहार आवश्यक है। इसी प्रकार परिवार के प्रत्येक सदस्य को पर्याप्त एवं मौसम के अनुकूल आरामदायक वस्त्र होने चाहिए ताकि अवकाश के क्षणों में प्रत्येक व्यक्ति आराम और मनोरंजन कर सके। इसके लिए गृहिणी / प्रबन्धक को विभिन्न बातों की जानकारी होनी चाहिए, यथा-
सस्ते भोज्य पदार्थ में विद्यमान पोषक तत्वों की जानकारी, भोज्य तत्त्वों के गुण तथा विभिन्न भोज्य पदार्थों की विशेषताएँ, मौसम पर उपलब्ध भोज्य सामग्रियों को वर्ष भर तक संग्रहीत रखने की जानकारी, भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का ज्ञान, भोजन परोसने के आकर्षक ढंग का ज्ञान, वस्त्रोत्पादक रेशों की जानकारी, मौसम के अनुकूल उपयुक्त वस्त्रों की जानकारी, विशिष्ट अवसर, त्यौहार, पार्टी या शादी-विवाह में पहनने वाले परिधानों की जानकारी, मकान हवादार है और उसमें पर्याप्त स्थान है अथवा नहीं, घर की साफ-सफाई, व्यवस्था एवं सजावट आदि।
2. सीमित आय से अधिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना
हमारी आवश्यकताएँ अनन्त हैं परन्तु साधन सीमित होते हैं। आवश्यकताओं का सम्बन्ध मनुष्य की इच्छाओं से होता है और इच्छाएँ मुक्त तथा कल्पनाओं से प्रेरित होती हैं। इस कारण आवश्यकताएँ विविध प्रकार की होती हैं। सीमित साधनों में असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करना वस्तुतः एक विकट समस्या है क्योंकि आय को आसानी से बढ़ाया नहीं जा सकता। अतः गृह प्रबन्ध का दूसरा परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्देश्य है सीमित साधनों में अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाए। कुशल गृहिणी का यह दायित्व है कि व्यय को आय से अधिक नहीं जाने देना चाहिए। इसके लिए उसे बजट बनाने, हिसाब लिखने, आय-व्यय का सही संतुलन आदि का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। इतना ही नहीं, उसे भविष्य की आवश्यकताओं के लिए भी कुछ बचत करनी चाहिए तथा धन का विनियोग सही तरीके से करना चाहिए। अतः बजट बनाकर उसी के अनुसार खर्च किया जाना चाहिए। आय में कमी होने पर व्यय में कटौती कर आय-व्यय को संतुलित करना चाहिए। बजट किस तरह से बनाना है, किन-किन सामग्रियों की खरीददारी की जानी है, वस्तुएँ कहाँ से खरीदनी हैं, परिवार की मासिक आय कितनी है आदि महत्वपूर्ण बातों की जानकारी गृहिणी को अवश्य होनी चाहिए। पड़ोसियों की देखादेखी, छूट की लालच या विज्ञापनों के भ्रमजाल में फँसकर अनाप-शनाप खर्च करना तथा अनावश्यक वस्तुओं की खरीददारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यय आय से अधिक हो जाता है तथा परिवार कर्ज के बोझ से दब जाता है।
3. गृह कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करना
गृह प्रबन्ध का एक उद्देश्य गृह कार्यों को कुशलतापूर्वक समय पर सम्पन्न करना भी है। कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने से आशय है कि कार्य को इस ढंग से सम्पन्न किया जाए जिससे समय, शक्ति और श्रम की बचत हो । किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए गृहिणी को योजना (Planning) बना लेनी चाहिए। योजना दिन भर, सप्ताह भर, माह भर तथा वर्ष भर की बनायी जा सकती है। कार्यों की योजना बना लेने से काम करने में सुविधा रहती है साथ ही कार्य कम समय में सुगमतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है । कार्यों को महत्व, तीव्रता एवं आवश्यकता के अनुसार प्राथमिकता देते हुए सम्पन्न करना चाहिए । योजना बनाते समय परिवार के सदस्यों की राय लेना तथा उनकी मदद लेना आवश्यक है। योजना को कार्यरूप देने में परिवार के सदस्यों से कौन-कौन से कार्य में सहयता मिल सकेगी, इसका भी योजना में अंकन होना चाहिए। योजना बनाते समय परिवार के सदस्यों की रुचि, कार्यक्षमता, आराम आदि का भी ध्यान रखना चाहिए। कार्य को कुशलता सम्पन्न करने हेतु योजना बनाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि कार्य करने के तरीकों तथा विधियों का ज्ञान भी गृहिणी को होना चाहिए।
4. पारिवारिक स्तर को बनाये रखना
गृह प्रबन्ध का एक उद्देश्य परिवार के रहन-सहन के स्तर को भी बनाये रखना है। यदि सम्भव हो तो पारिवारिक स्तर को और ऊँचा उठायें जिससे परिवार के सदस्यों की शान-शौकत, ज्ञान, कुशलता, धार्मिक प्रवृत्तियों आदि में वृद्धि हो।
5. पारिवारिक वातावरण को स्वच्छ बनाये रखना
हम जानते हैं कि गृह प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य सम्पादित कार्यों का मूल्यांकन करना तथा पारिवारिक लक्ष्य प्राप्त करना है। पारिवारिक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पारिवारिक वातावरण स्वच्छ, सुमधुर, सौहार्द्र और सुखद होना चाहिए। द्वेषपूर्ण तथा कलहपूर्ण वातावरण में पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती।
यह आवश्यक नहीं है कि पारिवारिक वातावरण तभी सुखद होगा जब घर में काफी धन-दौलत हो। कम पैसे अथवा साधन में भी पारिवारिक वातावरण को सुखद तथा आनन्दमय बनाया जा सकता है। यह तो गृहिणी की कार्यकुशलता, चातुर्य, बुद्धिमता और क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। परिवार की सफलता, घर की सुख-समृद्धि, सम्पन्नता तथा विकास गृहिणी पर ही निर्भर करता है। वह घर की संचालिका और निर्देशिका होती है। प्रायः देखा गया है कि समान आर्थिक आय एवं साधन होते हुए भी दो परिवार के रहन-सहन, नैतिक आचरण तथा जीवन-स्तर में विभिन्नता होती है। जिस घर की गृहिणी कुशल प्रबन्धक और बुद्धिमान होती है उस परिवार का रहन-सहन एवं जीवन स्तर गृहिणी वाले परिवार की अपेक्षा ऊँचा रहता है। अतः परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम, स्नेह, सौहार्द्र, अनुशासन एवं पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करना भी गृह प्रबन्ध का उद्देश्य होता है।
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