प्रभाव किसे कहते हैं?, परिभाषा, अर्थ, प्रकृति, स्रोत एवं लक्ष्य | prabhav kise kahate hain

प्रभाव

रॉबर्ट डहल ने राजनीतिक विश्लेषण में शक्ति और प्रभाव (Power and Influence) को केन्द्रीय अवधारणाएँ माना है। क्रियात्मक राजनीति तथा सामान्य सामाजिक जीवन में भी दोनों शब्दों का प्रभाव अद्वितीय है किन्तु मानव की सांस्कृतिक प्रगति के साथ-साथ शक्ति की तुलना में प्रभाव का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। लोकतन्त्र के शासन का रथ प्रभाव के घोड़े ही खींचते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में भी प्रभाव की भूमिका निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्रत्येक शक्ति समुदाय, समूह या संस्था अपना प्रभाव बढ़ाने में लगे हुए है। ये सभी जानना चाहते हैं कि दूसरों की तुलना में उनका प्रभाव कितना है? दूसरों में से कौन अधिक प्रभावशाली है? उनके लिए अपने निजी प्रभाव को बढ़ाने के कौन-से तरीके हो सकते हैं? वे अपने प्रभाव को कब और कैसे बढ़ा सकते हैं? आदि। राजनेताओं, उम्मीदवारों आदि के लिए तो ये जीवन-मरण का प्रश्न है? अपने विपक्षियों तथा स्वपक्ष के प्रभाव का सही मूल्यांकन न कर पाने पर राजनेताओं के राजनीतिक जीवन की प्रायः समाप्ति हो जाती है। निक्सन, इन्दिरा गाँधी, भण्डारनायके आदि इसके ताजा उदाहरण हैं।
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साम्यवादी देश भी प्रभाव मूल्यांकन सम्बन्धी भूल के दुष्परिणामों से अछूते नहीं रह पाते हैं। वस्तुतः प्रभाव का आकलन करना एक समस्या है। इसके लिए राजनीति विज्ञान ने अभी तक किसी समुचित उपागम, सिद्धान्त या विचारबन्ध का विकास नहीं किया है। राजनेता स्वयं ही अपने स्तर पर या अपने आप प्रभाव का मूल्यांकन करते रहते हैं किन्तु अनुभव यह बताता है कि प्रायः उनके मूल्यांकन गलत होते हैं। ये स्वयं एक पक्ष होने तथा राजनीति में शामिल होने के कारण सही स्थिति का पता करने में असमर्थ रहते हैं। साथ ही, वे चाटुकारी लोगों से घिरे रहने के कारण भी धोखा खा जाते हैं। अतएव यह आवश्यक है कि वे निष्पक्ष, अनुभवी एवं कुशल राजवैज्ञानिकों द्वारा प्रभाव का आकलन कराएँ। ऐसा विभिन्न स्तरों पर विशेषज्ञ सेवाओं के सृजन द्वारा ही किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रभाव - आकलन शासकों के साथ-साथ शासितों से भी सम्बन्ध रखता है। प्रभाव, प्रभावक एवं प्रभावितों का गत्यात्मक सम्बन्ध ही राजनीतिक है। सत्ता, नेतृत्व, दल आदि उसी के विभिन्न रूप हैं। राजव्यवस्था अन्ततोगत्वा प्रभाव व्यवस्था ही है।

प्रभाव का अर्थ एवं व्याख्या

राजनीति विज्ञान के सभी विद्वान इस विषय पर एकमत हैं कि 'प्रभाव' का कोई निश्चित अर्थ नहीं है । शक्ति की तरह, प्रभाव को भी, 'दूसरों का व्यवहार परिवर्तित कर सकने की क्षमता' बताना सिद्धान्त-निर्माण एवं विश्लेषण की दृष्टि से विवादास्पद है। प्रायः विवाद इस विषय पर है कि इस 'व्यवहार-परिवर्तन की क्षमता' को शक्ति कहा जाये या प्रभाव ? इस व्यवहार-परिवर्तन का विश्लेषण एवं मापन कैसे किया जाये ? शक्ति की परिभाषा को ज्यों का त्यों प्रभाव पर लागू करना इसलिए ठीक नहीं है क्योंकि उसमें प्रभावित व्यक्ति के प्रतिरोध के होते हुए भी व्यवहार- क्षमता होती है। प्रभाव में प्रतिरोध लगभग समाप्त हो जाता है। अतएव इसकी परिभाषा एवं व्याख्या भिन्न प्रकार से की जानी चाहिए।
बचाश के मतानुसार, “एक व्यक्ति एक निर्दिष्ट क्षेत्र में उस सीमा तक दूसरे पर प्रभाव रखता है कि पहला व्यक्ति, प्रकट या अप्रकट रूप से बिना किसी उग्र रूप से वंचित करने का डर दिखाये, दूसरे व्यक्ति को अपना कार्य-मार्ग परिवर्तित करने को विवश कर दे।" डहल प्रभाव को कर्ताओं ( Actors) के मध्य सम्बन्ध कहता है। उसके मतानुसार, "यह व्यक्तियों, समूहों, संघों, संगठनों, राज्यों के मध्य सम्बन्ध है।.... यह एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमें एक कर्ता दूसरे कर्ताओं को वह करने के लिए प्रेरित "करता है जिसे वे पहले नहीं करते थे।" लासवैल ने भी प्रभाव की इसी प्रकार व्याख्या की है। प्रभाव की विवेचना करने से पूर्व उसका शक्ति से अन्तर भी समझ लेना चाहिए।

शक्ति अथवा प्रभाव

शक्ति दूसरों के व्यवहार को परिवर्तन करने वाली क्षमता की परिचायक संज्ञा (Noun) है किन्तु 'प्रभाव' शब्द का प्रयोग संज्ञा एवं क्रिया (Verb) दोनों के रूप में किया जा सकता है। क्रिया के रूप में यह सभी प्रकार के व्यवहार को परिवर्तन करने वाली प्रक्रियाओं का सूचक बन जाता है। यहाँ शक्ति के बल-प्रयोगात्मक स्वरूप को ग्रहण किया गया है जबकि प्रभाव को अ-बलप्रयोगात्मक एवं अदमनात्मक माना गया है किन्तु अदमनात्मक होते हुए भी प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली हो सकता है। राजनीति विज्ञान में इसी प्रकार के राजनीतिक प्रभाव या अ- बलप्रयोगात्मक शक्ति का अध्ययन किया जाता है।
इस दृष्टि के अनुसार प्रभाव शक्ति का एक प्रकार है। लासवैल, सिंगर आदि विद्वान इसी विचार को अपनाते हैं। फ्रीड्रिक ने कहा है कि “प्रभाव एक प्रकार की शक्ति है-अप्रत्यक्ष तथा अगठित।" इस दृष्टिकोण को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-सामान्य और विशिष्ट। सामान्य दृष्टिकोण वेबर, मार्गेन्थो, मैकाइवर, बीयर्सटेड आदि ने प्रतिपादित किया है। ऐसे विचारक शक्ति को व्यापक रूप में देखते हैं। वेबर ने तो केवल औचित्यपूर्ण शक्ति को ही अपने अध्ययन का विषय बनाया है। मार्गेन्थो ने राजनीति को शक्ति संघर्ष के रूप में देखा है। बीयर्सटेड ने तो प्रभाव जैसे महत्वपूर्ण तत्व की ही अवहेलना की है। दूसरा विशिष्ट दृष्टिकोण शक्ति को दो प्रकार का मानता है। उसका पहला स्वरूप बल, दमन तथा शक्तियों पर आधारित है। दूसरा स्वरूप अदमनात्मक है जिसे प्रभाव कहा जा सकता है। राजनीति में यही अदमनात्मक शक्ति महत्वपूर्ण है। दूसरे अर्थ में शक्ति के दो रूप हैं- बलप्रयोगात्मक शक्ति तथा अ- बलप्रयोगात्मक या अदमनात्मक शक्ति।

प्रभाव एवं शक्ति में अन्तर

प्रभाव एवं शक्ति में परस्पर समानताएँ एवं असमानताएँ दोनों पायी जाती हैं। यहाँ हम पहले असमानताओं का विवेचन कर रहे हैं। इनका परस्पर अन्तर इस प्रकार है-
  1. शक्ति बल-प्रयोगात्मक होती है। उसके पीछे कठोर, भौतिक एवं सम्भाव्य शक्तियों का प्रयोग होता है। जब शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो शक्ति से प्रभावित होने वाले व्यक्ति या समूह के पास उसे स्वीकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं होता। प्रभाव अनुनयात्मक, स्वेच्छापूर्ण तथा मनोवैज्ञानिक होता है। प्रभावित होने वाले व्यक्ति या समूह के पास सदैव उसके अनुपालन के विषय में अनेक विकल्प उपस्थित रहते हैं।
  2. शक्ति प्रायः शक्तिधारक के पास एक स्वतन्त्र परिवर्त्य रूप में रहती है। उसका प्रयोग शक्तिधारक द्वारा ही दूसरों की इच्छा के विरुद्ध एवं प्रतिरोध के रहते हुए भी किया जा सकता है। प्रभाव सम्बन्धात्मक होता है और उसकी सफलता का आधार प्रभावित व्यक्ति की सहमति या स्वीकृति होती है अर्थात् प्रभाव प्रभावित व्यक्ति की स्वेच्छा पर निर्भर होता है।
  3. शक्ति को अप्रजातन्त्रात्मक माना जाता है। वह प्रति शक्ति (Counter Power) को आमन्त्रित करती है तथा भय पर आधारित होती है। इसके विरुद्ध प्रभाव को पूर्णत: प्रजातन्त्रात्मक माना जाता है। उसका अनुपालन स्वेच्छापूर्वक किया जाता है। प्रभाव का प्रभाव विचारवादी समानताओं और मूल्यों की समरूपता के कारण होता है।
  4. जब शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो प्रभाव स्वतः समाप्त हो जाता है। शक्ति को कभी भी प्रभूत मात्रा में प्रयोग नहीं किया जा सकता। उस पर अनेक सीमाएँ लगी होती हैं। शक्ति कितनी भी अधिक क्यों न हो, उसे किसी-न-किसी तरह प्रभाव के सहारे की आवश्यकता अवश्य पड़ती है अन्यथा शक्ति के दुर्बल होते ही या शक्तियों के प्रभाव में उसका अनुपालन नहीं हो पाता है। प्रभाव की शक्ति असीम होती है और प्रभाव अर्जित कर लेने पर उसका खुलकर लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि प्रभावक एवं प्रभावित के बीच एक मनोभावात्मक समानता स्थापित हो जाती है। प्रभाव स्थापित हो जाने के पश्चात् शक्ति अनावश्यक हो जाती है।
  5. शक्ति को सभ्यता एवं संस्कृति के बाह्य तत्वं के रूप में स्वीकार किया जाता है। उसका प्रयोग निश्चित, सीमित और विशिष्ट रूप से ही किया जा सकता है। उसके प्रयोगकर्ता का स्वरूप प्रायः सुनिश्चित होता है। जबकि प्रभाव प्रायः व्यक्तिगत, अमूर्त, अस्पष्ट तथा व्यापक होता है । बन्दूक के से अनिच्छापूर्वक किया गया कार्य बन्दूकधारी की उपस्थिति तक ही किया जाता है। किन्तु प्रभावित व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक, प्रभावक की उपस्थिति और अनुपस्थिति में, प्रभावक के निर्देशानुसार कार्य करता रहता है। एक लोकनेता के संकेतों पर अनुयायी जेल चले जाते हैं, लाठियाँ खाते हैं या प्राण गँवा देते हैं। ऊर्जा, समय, धन और प्रतिक्रिया की दृष्टि से शक्ति या बल प्रयोग की कीमत बहुत ऊँची पड़ती है, जबकि प्रभाव बहुत सस्ता पड़ता है।

शक्ति और प्रभाव में समानताएँ

उपर्युक्त असमानताओं के होते हुए भी दोनों अवधारणाएँ कुछ समानताएँ भी रखती हैं। बच्राश एवं बाराज के मतानुसार, दोनों अवधारणाएँ बौद्धिक एवं सम्बन्धात्मक हैं तथा एक-दूसरे को प्रबलीकृत (Reinforce) करती हैं। दोनों औचित्यपूर्ण हो जाने के पश्चात् प्रभावशाली होती हैं। प्रभाव, शक्ति उत्पन्न करता है तथा शक्ति प्रभाव को बलशाली बनाती है। दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता रहती है। कभी-कभी यह जानना भी कठिन हो जाता है कि प्रभावित व्यक्ति में व्यवहार परिवर्तन शक्ति के कारण हुआ है या प्रभाव के कारण हुआ है ? इसका निर्णय तो 'ए' और 'बी' के पारस्परिक सम्बन्धों की अनुभवात्मक अन्वेषण करने पर ही पता चल सकता है। प्रभाव और शक्ति का कुशल प्रयोग एक अच्छा राजनेता ही कर सकता है। वह शक्ति के होते हुए भी या न्यून मात्रा में होने पर भी प्रभाव के सहारे प्रभावित के व्यवहार को परिवर्तित करने में सफल हो जाता है।
कुछ भी हो, शक्ति और प्रभाव परिस्थितियों के अनुसार स्वतन्त्र, मध्यवर्ती अथवा आश्रित परिवर्त्य हो जाते हैं। एक व्यक्ति, शक्ति रखते हुए भी प्रभावहीन हो सकता है; उदाहरण के लिए, 25 मार्च, 1971 के पहले पूर्वी बंगाल में पाकिस्तान का भूतपूर्व राष्ट्रपति याह्या खां । ठीक उसी तरह एक व्यक्ति प्रभाव रख सकता है, बिना शक्ति-शास्तियों के। जैसे, उक्त उदाहरण के सन्दर्भ में पूर्वी बंगाल के राजनेता शेख मुजीबुर्रहमान या जयप्रकाश नारायण की स्थिति। शक्ति के होते हुए भी अन्य किसी महत्वपूर्ण प्रभावक के प्रभाव के कारण शक्तिधारक शक्तिहीन हो सकता है। अतएव स्पष्ट है कि प्रभाव राजनीति विज्ञान में विशेषत: प्रजातन्त्रात्मक देशों में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

प्रभाव की प्रकृति

रोवे के मतानुसार, प्रभाव सर्वत्र असमान रूप से बँटा होता है। यह राजनीतिक जीवन का एक तथ्य है। विशाल जनसंख्या का प्रभाव बहुत कम हो सकता है, जबकि अल्पसंख्यक अभिजन अत्यधिक प्रभावशाली हो सकते हैं जैसा कि विकासशील देशों में होता है। एक असमानता का कारण राजनीतिक साधनों के ऊपर असमान नियन्त्रण है। प्रत्येक समाज में कार्यों का विशेषीकरण होता है और कुछ लोग विशेष कार्यों के विषय में अधिक ज्ञान एवं कुशलता रखते हैं। कुछ कार्य अधिक महत्वपूर्ण तथा कुछ काम कम महत्वपूर्ण होते हैं। जीवन में कुछ लोग महत्वपूर्ण सुविधाएँ, सम्पत्ति, प्रसिद्धि, प्राणिशास्त्रीय विशेषताएँ, लिंग विशेष आदि प्राप्त कर लेते हैं। इस प्राणिशास्त्रीय और सामाजिक उत्तराधिकार के अतिरिक्त व्यक्तियों के अनुभव भिन्न-भिन्न होते हैं। उनके लक्ष्य और अभिप्रेरणाएँ भी अलग-अलग होती हैं। इसी प्रकार कुछ लोग कुछ विशेषताओं को प्राप्त करने के लिए विशेष तैयारी, शिक्षा और दीक्षा बाप्त करते हैं। इन सबमें एक प्रतियोगिता अथवा द्वन्द्व रहता है। राजनीतिक व्यवस्था में कुछ लोग सरकार द्वारा प्रवर्तित की जाने वाली नीतियों, नियमों तथा विनियमों पर विशेष प्रभाव रखने का प्रयास करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे राजनीतिक प्रभाव प्राप्त करने की चेष्टा में लगे रहते हैं किन्तु सभी को एक-सी सफलता नहीं मिल पाती और राजनीतिक प्रभाव की असमानता बनी रहती है। इस राजनीतिक भाव की असमानता के रूप में साधनों के वितरण की असमानताएँ, अपने राजनीतिक साधनों के प्रयोग करने की कुशलताओं में विभिन्नताएँ तथा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए साधनों के उपयोग की पृथक्ताएँ आदि कारण रहते हैं। ये समस्त कारण एक विशिष्ट चक्राकार प्रक्रिया में कार्य करते रहते हैं। विशिष्ट प्रभाव रखने वाले प्रभावक वर्ग को शासक- अभिजन (Ruling Elite) अथवा राजनेताओं का समूह कहकर सम्बोधित किया जाता है।
राजनीतिक प्रभाव अनेक कारणों से एवं विभिन्न परिस्थितियों में बदलता रहता है। यह एक अत्यन्त गतिशील परिवर्त्य है जिसका सम्बन्धित पक्षों द्वारा निरन्तर राजनीतिक विश्लेषण किया जाना चाहिए।

प्रभाव के स्रोत एवं लक्ष्य

राजनीतिक प्रभाव के असमान वितरण पर अरस्तू, रूसो, मार्क्स आदि अनेक राजविचारकों ने अपने-अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। राजनीतिक प्रभावों की असमानता का मूल कारण राजनीतिक स्रोतों की असमानता है। रोवे के मतानुसार, राजनीतिक स्रोत सम्पत्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यक्तिगत आकर्षण, कुशलता आदि पर निर्भर होते हैं। वह उन उद्देश्यों, साधनों तथा क्रियाविधियों पर भी निर्भर होते हैं जिसके लिए उसका उपयोग किया जाता है। राजनीतिक प्रभाव में अपने सहायकों की कुशलता एवं साधनों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उसमें राजनीतिक विरोधियों का भी प्रमुख स्थान होता है। मूल्यों एवं मूल्यों के स्रोत में परिवर्तन आ जाने पर राजनीतिक प्रभाव में भी परिवर्तन आ जाता है। उदाहरणार्थ, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों के पश्चात् राजनीतिक प्रभाव के क्षेत्र में नये वर्गों का उद्भव होता है। राजनीतिक प्रभाव के लक्ष्य या मूल्य अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मूल्यों या लक्ष्यों की समानता के आधार पर ही राजनीतिक प्रभाव का भवन खड़ा होता है। इनके विषय में, ज्यों-ज्यों और जितनी - जितनी समानता कम होती जाती है, उतनी मात्रा में क्रमशः प्रभाव, सत्ता या औचित्यपूर्णता में गिरावट आती जाती है। प्रभाव का प्रभावक स्वयं के लिए उपयोग कर सकता है। जैसा कि मिशैल्स ने 'कुलीनतन्त्र के लौह-नियम' (Iron Law of Oligarchy) में उल्लेख किया है। उसका उपयोग नीति को प्रभावित और निश्चित करने के लिए भी किया जा सकता है।
प्रभाव और शक्ति स्वयं मूल्य भी हैं और मूल्यों के आधार भी हैं। लासवैल के समनुरूपात्मक विश्लेषण में प्रभाव (influence) को आठ मूल्य-संवर्गों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । शक्ति की अपेक्षा प्रभाव को अधिक व्यापक और सर्वोपरि माना गया है। किसी व्यक्ति या समूह की निहित क्षमता और मूल्य-स्थिति को प्रभाव कहकर सम्बोधित किया गया है।
मूल्य संवर्ग आठ है-
(i) शक्ति (Power)
(ii) सम्मान (Respect)
(iii) ईमानदारी (Rectitude) या सत्यनिष्ठा,
(iv) स्नेह (Affection)
(v) कल्याण (Well-being)
(vi) सम्पदा (Wealth)
(vii) प्रबोधन ( Enlightenment) तथा
(viii) कुशलता (Skill)।

प्रथम चार को सम्मान (Deference) तथा पिछले चार को कल्याण (Welfare) वर्ग के अन्तर्गत रखा गया है। इन मूल्यों के आधार पर प्रभाव घटता-बढ़ता रहता है। कल्याण-मूल्य मनुष्य के भौतिक स्वरूप (Physical Form) का संधारण करते हैं। सम्मान मूल्य स्वयं तथा दूसरे के अहं (Self) के सन्दर्भ में प्राप्त किये जाते हैं। इनमें से शक्ति राजनीति की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इनमें क्षेत्र, नियन्त्रण की मात्रा, विस्तार प्रयोग का दमनात्मक या अनुनयात्मक रूष, वर्तमान तथा सम्भाव्य क्षमता आदि दृष्टियों से अन्तर होता है। मैकियावेली, हॉब्स, लॉक, रूसो, ब्राइस आदि ने भी ऐसी ही प्रभाव जैसी कुछ शाश्वत विशेषताओं का विवेचन किया है। ये सभी विशेषताएँ मानव स्वभाव में पायी जाती हैं। उनमें अभिप्रेरित होकर मनुष्य कार्य करता है। इनको स्थायी चर मानकर समाज - विज्ञानों का विकास किया जाता है किन्तु इन अभिप्रेरकों या मूल्यों की संख्या और स्वरूप के बारे में मतैक्य नहीं है। इन मूल्यों का समाज में असमान वितरण पाया जाता है। लासवैल ने कहा है कि प्राय: एक मूल्य का आधिक्य अन्य मूल्यों को भी अपने चुम्बकीय आकर्षण से खींच लेता है। इसे मूल्य- समूहन (Value-agglutination) कहा गया है। मूल्यों की असमानता विषमता, तनाव, प्रतियोगिता आदि उत्पन्न करती है।

प्रभाव एवं शक्ति का परस्पर रूपान्तरण

प्रभाव-सम्बन्ध स्थापित होने के कुछ आधारभूत मूल्य होते हैं। प्रभाव का प्रयोग दूसरे की नीतियों के भार, क्षेत्र और विस्तार में परिवर्तन ला देता है। आधारभूत मूल्य को प्रभाव की 'कारणात्मक - दशा' कहा जा सकता है। वही उसको प्रवर्तनकारी अथवा प्रभावपूर्ण बनाता है। प्रभावशाली होने का अर्थ उच्च मूल्य स्थिति को प्राप्त करना है। इस मूल्य-स्थिति को प्रभाव - आधार कहा जा सकता है। कोई भी मूल्य प्रभाव आधार बन सकता है। चाहे वह धन, कुशलता, शारीरिक शक्ति, चारित्र्य आदि ही क्यों न हो । शक्ति भी प्रभाव का एक प्रकार है। प्रभाव का प्रकार अपने आधार मूल्य तथा विस्तार की विशिष्टता के आधार पर निर्धारित किया जाता है। प्रभाव-सम्बन्धों में उनके आधार मूल्यों एवं विस्तार के आधार पर भेद करना लाभदायक होता है। प्रभाव का प्रकार एक तरह से शक्ति का ही प्रकार है किन्तु उसमें शास्तियों का स्वरूप अपेक्षाकृत मृदुल होता है। शक्ति के पीछे कठोर शास्तियाँ उपस्थिति रहती हैं। ज्यों ही प्रभाव के पीछे निहित शास्तियाँ, प्रभाव के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों के लिए कठोर हो जाती हैं, प्रभाव-सम्बन्धों को शक्ति सम्बन्ध कह दिया जाता है। सभी प्रभाव-सम्बन्धों पर यही बात लागू होती है। मध्यकालीन चर्च का प्रभाव प्रयोग शक्ति प्रयोग बन गया था।
प्रभाव-सम्बन्धों के प्रकार शक्ति के विस्तार के अन्तर्गत आ जाने से, शक्ति प्रकार भी बन जाते हैं। शक्ति पर आधारित प्रभावों के प्रकार, उसी समय शक्ति के प्रकार कहे जायेंगे यदि वे उस शक्ति में प्रभाव का विस्तार भी शामिल करते हैं। जैसे, एक राजा अपनी शक्ति स्थिति के आधार पर नैतिकता के मानदण्डों पर प्रभाव डाल सकता है। एक प्रक्रिया या गतिविधि के रूप में प्रभाव एवं शक्ति एक-दूसरे के अति निकट आ जाते हैं।

प्रभाव मापन की समस्या

राजनीति में प्रभाव का मापन एक कठिन समस्या है। प्रभावों के स्रोत प्रायः गुप्त, संश्लिष्ट एवं अस्पष्ट होते हैं। प्रजातन्त्र में खुली प्रतियोगिता, स्वतन्त्रता प्रभाव पर आधारित शासन व्यवस्था होने के कारण प्रभाव का मापन आवश्यक होता है। प्रभाव व्यक्तियों, समूहों, संघों आदि के बीच में एक सम्बन्ध है । इनके बीच में स्थापित प्रभाव के सम्बन्ध को तथा उसके अस्तित्व एवं दिशा को जाना जा सकता है। राजनीति में विभिन्न कर्ताओं के बीच में (प्रभाव को सापेक्षिक सम्बन्ध से भी दर्शाया जा सकता है)।
प्रजातन्त्र में यह जानना सदैव ही आवश्यक होता है कि विशिष्ट राजनेताओं एवं नागरिकों के बीच में प्रभाव की मात्रा क्या है ? राजनीति विज्ञान के पिता अरस्तु ने जब राजनीतिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण संख्यात्मक आधार पर किया था, तब उसका अर्थ भी यही जानना था कि क्या उस राजव्यवस्था में एक व्यक्ति या अल्पसंख्यक वर्ग या बहुमत का प्रभाव है ? राजनीतिक विश्लेषण में प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन सदैव ही महत्वपूर्ण होता है। राबर्ट डहल ने प्रभाव की एक सामान्य परिभाषा दी है जो तुलना की सम्भावनाओं को बताती है। यदि 'ए' 'बी' को प्रभावित करता है और उसकी मात्रा 'एक्स' है तो हम 'ए' का 'बी' पर 'एक्स-1' प्रभाव कहेंगे। यदि प्रभाव की मात्रा 'एक्स-2' है तो हम कहेंगे कि प्रभाव की मात्रा कुछ अधिक बढ़ गयी है। इस आधार पर सभी प्रभावों की तुलना की जा सकती है। प्रभाव-मापन, सन्दर्भ में डहल के निम्नांकित निर्देश हैं-
  1. प्रभावित की स्थिति में जो परिवर्तन आता है, उसके आधार पर हम प्रभाव मात्रा की तुलना कर सकते हैं। यदि 'ए' 'बी' को चार विभिन्न अवसरों पर प्रभावित करता है तो हम उन मात्राओं को बता सकते हैं। इसी प्रकार 'ए' के एक्स, वाई, जेड व्यक्तियों पर होने वाले प्रभाव की मात्रा को भी देखा जा सकता है। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्रेट ब्रिटेन, पाकिस्तान, भारत, रूस और चीन पर आतंकवाद के विषय में अलग-अलग प्रभाव है।
  2. प्रभाव की मात्रा को उसके अनुपालन में व्यय की जाने वाली मनोवैज्ञानिक कीमत की दृष्टि से भी ज्ञात किया जा सकता है। जब कोई हड़ताल होती है तो हड़ताल में भाग लेने वाले सभी कर्मचारियों की मानसिक प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न होती है।
  3. प्रभाव के अनुपालन की सम्भावना (Probability) में भिन्नता की मात्रा अधिक होती है। व्यवस्थापिकाओं में किसी विधेयक पर प्राप्त होने वाले पक्ष और विपक्ष में मतों का अनुमान इसी प्रकार लगाया जाता है।
  4. अनुक्रियाओं के विस्तार की भिन्नता से प्रभाव का अनुमान अनेक बार लगाया जाता है। जैसे चुनावों में खड़े होने वाले विभिन्न उम्मीदवार जितनी संख्याओं में मत प्राप्त करते हैं, उनकी संख्याओं को उनके निर्वाचन क्षेत्र में पाये जाने वाले प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है।
  5. न्यूनाधिक मात्रा की दृष्टि से प्रभावों को मापा जाता है। अधिकांश निर्वाचनों के समय में अमेरिकी राष्ट्रपति, ब्रिटिश अथवा भारतीय दलों के विजय और पराजय की भविष्यवाणियाँ इन्हीं आधारों पर की जाती हैं।

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