विकेंद्रीकरण क्या हैं? अर्थ, परिभाषा, गुण, हानियाँ, आवश्यकता व महत्व | vikendrikaran kya hai

विकेन्द्रीकरण

प्रशासन एवं अभिशासन में आम व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था को अपनाना वर्तमान समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है। भारत के सन्दर्भ में विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था सम्पूर्ण शासन प्रणाली के समुचित संचालन के लिए बहुत जरूरी है। भारत जैसे घनी आबादी वाले बड़े देश को, जिसकी कि अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, एक ही केन्द्र से शासित करना अत्यन्त कठिन है। अतः भारत जैसे विशाल देश में शासन-प्रशासन के सफल संचालन के लिए विकेन्द्रीकरण शासन व्यवस्था को अपनाया गया है।

विकेन्द्रीकरण का अर्थ

सामान्य भाषा में, विकेन्द्रीकरण का अर्थ है कि शासन सत्ता को एक स्थान पर केन्द्रित करने के बजाय उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाये, ताकि आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित हो सके और वह अपने हितों व आवश्यकताओं के अनुरूप शासन संचालन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके। यही सत्ता के विकेन्द्रीकरण का मूल आधार है। अर्थात् आम जनता तक शासन- सत्ता की पहुँच को सुलभ बनाना ही विकेन्द्रीकरण है।
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यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सारा कार्य एक जगह से संचालित न होकर अलग-अलग जगह व स्तर से संचालित होता है। उन कार्यों से सम्बन्धित निर्णय भी उसी स्तर पर लिये जाते हैं। तथा उनसे जुड़ी समस्याओं का समाधान भी उसी स्तर पर होता है। जैसे त्रिस्तरीय पंचायतों में निर्णय लेने की प्रक्रिया ग्राम पंचायत स्तर क्षेत्र पंचायत स्तर एवं जिला पंचायत स्तर से संचालित होती हैं।

विकेन्द्रीकरण को निम्न रूपों में समझा जा सकता है-
  1. विकेन्द्रीकरण वह व्यवस्था है जिसमें विभिन्न स्तरों पर सत्ता, अधिकार एवं शक्तियों का बँटवारा होता है। अर्थात् केन्द्र से लेकर गाँव की इकाई तक सत्ता, शक्ति व संसाधनों का बँटवारा। साथ ही हर स्तर अपनी गतिविधियों के लिए स्वयं जवाबदेह होता है। हर इकाई अपनी जगह स्वतन्त्र होते हुए केन्द्र तक एक सूत्र से जुड़ी रहती है।
  2. विकेन्द्रीकरण का अर्थ है विकास हेतु नियोजन क्रियान्वयन एवं कार्यक्रम की निगरानी में स्थानीय लोगों की विभिन्न स्तरों में भागीदारी सुनिश्चित हो । स्थानीय इकाइयों व समुदाय को ज्यादा-से-ज्यादा अधिकार व संसाधनों से युक्त करना ही वास्तविक विकेन्द्रीकरण करना है।
  3. विकेन्द्रीकरण वह व्यवस्था है जिसमें सत्ता जनता के हाथ में हो और सरकार लोगों के विकास के लिए कार्य करे।
विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था में शासन की हर इकाई स्वायत्त होती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह इकाई अपने मनमाने ढंग से कार्य करे अपितु प्रत्येक इकाई अपने से ऊपर की इकाई द्वारा बनाये गये नियमों व कानूनों के अन्तर्गत कार्य करती है। उदाहरण के लिए, भारत में राज्य सरकारें अपने राज्य के लोगों के विकास के लिए नियम कानून, नीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाने के लिए स्वतन्त्र हैं लेकिन वे केन्द्रीय संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत ही यह कार्य करती हैं। कोई भी राज्य सरकार स्वतन्त्र होते हुए भी संविधान के नियमों से बाहर रह कर कार्य नहीं कर सकती।

विकेन्द्रीकरण के गुण

जो दोष हमें केन्द्रीय शासन व्यवस्था में देखने को मिलते हैं, विकेन्द्रीकरण में उनसे स्वतः मुक्ति मिल जाती है। विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के पक्ष में कई तर्क दिये जा सकते हैं।
विकेन्द्रीकरण व्यवस्था के गुण इस प्रकार हैं-
  1. इस व्यवस्था में जनता को राजनीतिक कार्यों में भाग लेने का अवसर मिलता है, अतएव प्रशासन की लोकप्रियता बढ़ती है।
  2. प्रशासन के नियम जनता की आवश्यकतानुसार परिवर्तित किये जा सकते हैं।
  3. स्थानीय समस्याओं का जनआकांक्षाओं के अनुसार समाधान आसानी से सम्भव है।
  4. प्रशासकीय परीक्षण आसानी से किये जा सकते हैं।
  5. अधिकारियों के हाथों में अनेक कार्य और शक्तियाँ होने से उनका उत्साह बढ़ा रहता है।
  6. केन्द्रीय कार्यालय का कार्यभार हल्का हो जाता है।
  7. लोकतन्त्र व्यापक एवं वास्तविक बनता है।
  8. कोई भी कार्य एकत्रित नहीं होता ( पेंडिंग नहीं होता) तथा समस्याओं के निराकरण में वास्तविकता आ जाती है।

विकेन्द्रीकरण के दोष

विकेन्द्रीकरण के दोष इस प्रकार हैं-
  1. क्षेत्रीय अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता बढ़ जाती है।
  2. शासकीय कार्यों पर स्थानीय राजनीति का प्रभाव पड़ता है।
  3. विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की प्रशासकीय इकाइयाँ होती हैं। इससे देश की एकता खण्डित होती है।
  4. क्षेत्रीय हितों के चक्कर में कई बार कर्मचारी राष्ट्रीय हितों को भी तिलांजलि दे देता है जो घातक है।
  5. उत्तरदायित्व के विभाजित होने का आशय होता है; किसी का भी उत्तरदायित्व नहीं ।
  6. राजनैतिक गुटबाजी को प्रोत्साहन मिलता है।
  7. धन और समय की बर्बादी होती है क्योंकि प्रशासन का दोहरापन होता है।

विकेन्द्रीकरण की हानियाँ

विकेन्द्रीकरण की मुख्य हानियाँ निम्नानुसार हैं-
  1. अधिक वित्तीय भार ( More Financial Burden)- विकेन्द्रीकरण में अधिकार स्वीकार करने के लिए प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारियों को रोजगार देने की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप उपक्रम के वित्तीय - भार में वृद्धि होती है। छोटे उद्यम विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की नियुक्ति का खर्च नहीं सह सकते हैं।
  2. समान नीतियों का पालन नहीं किया जाता (Uniform Policies Not Followed)- विकेन्द्रीकरण के तहत, समान नीतियों का पालन करना संभव नहीं है। यह निर्णय लेने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है और परिणामस्वरूप प्रत्येक प्रबंधक अपनी प्रतिभा के अनुसार नीतियों का निर्माण और निष्पादन करता है।
  3. विवाद (Conflicts)- विकेन्द्रीकरण किसी भी कीमत पर लाभ प्राप्त करने के लिए विभागीय प्रमुखों पर दवाब बढ़ाता है। कभी-कभी उच्च प्रबंध लाभप्रदता बढ़ाने के लिए जान-बूझकर विभिन्न विभागों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है। इस प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप विभागों के बीच विवाद उत्पन्न होते हैं।
प्रत्येक संस्था में भारार्पण आवश्यक है किन्तु विकेन्द्रीकरण वैकल्पिक - अधिकारों के भारार्पण का अर्थ अधीनस्थों के साथ कार्य और अधिकार को साझा करना है, जबकि विकेन्द्रीकरण एक अंतिम परिणाम है जो प्राप्त होता है जब अधिकार विभिन्न स्तरों के बीच बँटता है। भारार्पण आवश्यक है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अकेले पूरा काम नहीं कर सकता है। प्रत्येक को अपने उत्तरदायित्व पूरा करने के लिए दूसरों की मदद की आवश्यकता होती है। एक व्यक्ति अधिकारों के भारार्पण द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता का विस्तार कर सकता है। यह प्रत्येक संस्था के लिए एक कुंजी है। परंतु विकेन्द्रीकरण आवश्यक नहीं है क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है जिसका उद्देश्य संस्थाओं को अपनी गतिविधियों के बड़े विस्तार को संभालने के लिए तैयार करना है।
यह एक प्रणाली है जो संगठनात्मक संरचना को परिभाषित करती है विकेन्द्रीकरण को अपनाना प्रत्येक संस्था के लिए अनिवार्य नहीं है । वास्तव में विकेन्द्रीकरण की मात्रा संस्था से संस्था में भिन्न होती है।

विकेन्द्रीकरण के आयाम

  1. कार्यात्मक स्वायतत्ता- इसका अर्थ है सत्ता के विभिन्न स्तरों पर कार्यों का बँटवारा। अर्थात् हर स्तर अपने-अपने स्तर पर कार्यों से सम्बन्धित जिम्मेदारियों के लिए जवाबदेही होगी।
  2. वित्तीय स्वायत्ता- इसके अन्तर्गत हर स्तर की इकाई को उपलब्ध संसाधनों को आवश्यकतानुसार खर्च करने व अपने संसाधन स्वयं जुटाने का अधिकार होता है।
  3. प्रशासनिक स्वायतत्ता- प्रशासनिक स्वायतत्ता का अर्थ है हर स्तर पर आवश्यक प्रशासनिक व्यवस्था हो तथा इससे जुड़े अधिकारी/कर्मचारी जनप्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह हों।

विकेन्द्रीकरण के लाभ

  1. स्थानीय स्तर पर स्थानीय समस्याओं को समझकर उनका समाधान आसानी से किया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने से कार्य तेजी से होंगे। कार्यों के क्रियान्वयन में अनावश्यक बिलम्ब नहीं होगा। साथ ही विकास कार्यों के लिए उपलब्ध धनराशि का उपयोग स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों की निगरानी में होगा, इससे पैसे का दुरूपयोग कम होगा।
  2. विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था से विकास योजनाओं के नियोजन एवं क्रियान्वयन में स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होती है। विकास कार्यों की प्राथमिकता स्थानीय स्तर स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तय की जायेगी व विकास कार्यक्रम ऊपर से थोपने के बजाय स्थानीय स्तर पर तय किये जायेंगे।
  3. विकास कार्यों का स्थानीय स्तर पर नियोजन एवं क्रियान्वयन किये जाने से उनका प्रभावी निरीक्षण होगा। नियोजन में स्थानीय समुदाय की भागीदारी होने से कार्यों के क्रियान्वयन व निगरानी में भी उनकी सक्रिय भागीदारी बढ़ेगी। इससे कार्य समय पर पूरे होंगे तथा उनकी गुणवत्ता में सुधार होगा।
  4. स्थानीय स्तर पर स्थानीय साधनों के उपयोग से अपना कोष विकसित होने व कार्य करने से कार्य की लागत भी कम आयेगी।
विकेन्द्रीकृत की सोच स्थानीय स्तर पर लोकतान्त्रिक तरीके से चयनित सरकार पर जोर देती है एवं यह भी सुनिश्चित करती है कि स्थानीय इकाई को सभी अधिकार, शक्तियाँ व संसाधन प्राप्त हो ताकि वे स्वतन्त्र रूप से कार्य कर सकें व अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के अनुरूप विकास कर सके ।

विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता व महत्व

शासन व सत्ता में आम जन की भागीदारी सुशासन की पहली शर्त है। जनता की भागीदारी को सत्ता में सुनिश्चित करने के लिए विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था ही एक कारगर उपाय है। विश्व स्तर पर इस तथ्य को माना जा रहा है कि लोगों की सक्रिय भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती विकेन्द्रीकृत व्यवस्था ही ऐसी व्यवस्था है जो कार्यों के समुचित संचालन व कार्यों को करने में पारदर्शिता, गुणवत्ता एवं जबावदेही को हर स्तर पर सुनिश्चित करने के रास्ते खोलती है। प्रत्येक स्तर पर लोग अपने अधिकारों एवं शक्तियों का सही व संविधान के दायरे में रह कर प्रयोग कर सकें इसके लिए विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता महसूस की गई है इस व्यवस्था में अलग-अलग स्तरों पर लोग अपनी भूमिका एवं जिम्मेदारियों को समझकर उनका निर्वाहन करते हैं।
प्रत्येक स्तर पर एक-दूसरे के सहयोग व उनमें आपसी सामंजस्य से हर स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का, आवश्यकता व प्राथमिकता के आधार पर उपयोग करने की स्वतन्त्रता मिलती है साथ ही हर स्तर पर प्रत्येक इकाई को अपने संसाधन स्वयं जुटाने का भी अधिकार व जिम्मेदारी होती है। लेकिन विकेन्द्रीकरण का अर्थ यह नहीं कि हर कोई अपने-अपने मनमाने ढंग से कार्य करने के लिए स्वतन्त्र है। कार्य करने की स्वतन्त्रता सुशासन के संचालन के लिए बनाये गये नियम कानूनों के दायरे के अन्दर होती है।
  1. अधीनस्थों के बीच पहल- क्षमता विकसित करना ( Develops Initiative among Subordinates ) - अधिकारों का भारार्पण मध्यम व निम्न स्तर पर अधीनस्थों को करने से उनमें आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। यह उन्हें अपने निर्णय लेने और अपने निर्णय पर निर्भर रहने की स्वतंत्रता प्रदान करता है । यह अधीनस्थों के बीच पहल - क्षमता विकसित करने में मदद करता है और उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है।
  2. त्वरित निर्णय-निर्धारण (Quick Decision-making)- चूंकि निर्णय लेने वाले अधिकार को क्रियाविधि के बिन्दु के सबसे करीब सौंपा गया है, त्वरित निर्णय लेने की सुविधा मिलती है । अधीनस्थों को उच्च अधिकारियों से परामर्श या निर्देशों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती, जो निर्णय लेने में देरी से बचने में मदद करता है ।
  3. उच्चस्तरीय प्रबंध के लिए राहत (Relief to Top Level Manage- ment) - विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया में, उच्चस्तरीय प्रबंधकों को उत्तरदायित्वों व अधिकारों के अत्यधिक भार से दबाया नहीं जाता है क्योंकि वे व्यवस्थित रूप से विभिन्न स्तरों पर उत्तरदायित्वों व अधिकारों का भारार्पण करते हैं तथा वे मुख्य एवं महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं।
  4. भविष्य के लिए प्रबंधकीय प्रतिभा का विकास करना (Develops Managerial Talent for Future ) - निम्नस्तरीय प्रबंधक निर्णय लेने वाले अधिकार का प्रयोग करने की कला सीखते हैं, जो उन्हें उच्च स्तर तक पदोन्नति के लिए तैयार करता है। भारार्पण किये हुए अधिकार, उन्हें संगठनात्मक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक स्वतंत्रता, चुनौती और दृष्टि प्रदान करते हैं। यह निम्न स्तर पर प्रबंधकीय प्रतिभा के विकास की ओर ले जाता है।
  5. बेहतर नियंत्रण (Better Control) - विकेन्द्रीकरण में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले कर्मचारी स्वयं निर्णय लेते हैं और वे अपने द्वारा लिये गये निर्णयों के लिए व्यक्तिरूप रूप से उत्तरदायी होते हैं।
  6. विकास की सुविधा प्रदान करना (Facilitates Growth)- विकेन्द्रीकरण निर्णय लेने के लिए अधीनस्थों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह अधीनस्थों के मध्य उत्तरदायित्व की भावना विकसित करता है। वे प्रयास करते हैं और एक-दूसरे से बेहतर निष्पादन करने की कोशिश करते हैं। यह समग्र उत्पादकता में वृद्धि और संस्था के विकास को सुविधाजनक बनाने में मदद करता है।
  7. बेहतर टीमवर्क (Improved Team Work)- विकेन्द्रीकृत संस्था में, विभिन्न स्तरों पर प्रबंधकों को स्वायत्तता दी जाती है । अध्ययनों से पता चला है कि विकेन्द्रीकृत प्रबंधक अपने समूह के सदस्यों को बारीकी से एकीकृत टीमों में जोड़ते हैं। निर्णय-निर्धारण में कर्मचारियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वे विशेष प्रयास करते हैं। वे उनसे निरंतर खुले सम्प्रेषण करते हैं तथा उनके कल्याण में व्यक्तिगत रुचि लेते हैं। इन कारकों से उत्कृष्ट टीमवर्क बनता है ।

भारत में विकेंद्रीकरण

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और पूरे विश्व में इसे अच्छे लोकतंत्र के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। परन्तु भारत जैसे विशाल देश में सिर्फ द्विस्तरीय शासन व्यवस्था से ही अच्छा शासन नहीं चल सकता है। भारत के कई राज्य यूरोप के स्वतंत्र देशों से भी बड़े हैं। जनसंख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश रूस से बड़ा है, तो महाराष्ट्र जर्मनी के बराबर है। भारत के अंदर ऐसे भी कई राज्य हैं, जिनकी अपनी अलग संस्कृति और पहचान है। इसलिए यहाँ सत्ता का विकेंद्रीकरण होना आवश्यक है।
जब केंद्र और राज्य सरकार की कुछ शक्तियों को लेकर स्थानीय सरकारों को दे दी जाती हैं, तो वह सत्ता का विकेंद्रीकरण कहलाता है। विकेंद्रीकरण का होना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि स्थानीय स्तर पर कई ऐसे मुद्दे और समस्याएँ हैं, जो स्थानीय स्तर पर ही सुलझाई जा सकती हैं। लोगों को अपने क्षेत्रों की बेहतर समझ होती है और उन्हें पता होता है कि यहाँ मूल समस्या क्या है। सत्ता के विकेंद्रीकरण से स्थानीय लोगों का फैसले में सीधे भागीदार बनाना भी संभव हो पाता है। इससे आम लोगों को लोकतांत्रिक भागीदारी की आदत पड़ती है।

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