सहलग्नता (Linkage in hindi)
सहलग्नता वास्तव में आनुवंशिक कारकों (जीनों) के गुणसूत्र पर लगे होने का स्वाभाविक परिणाम है। प्रत्येक जीव में हजारों जीन होते हैं जो कि गुणसूत्रों की सीमित संख्या पर व्यवस्थित होते हैं। स्पष्ट है कि प्रत्येक गुणसूत्र पर अनेक जीव होंगे। अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान समजात गुणसूत्रों में परस्पर सूत्रयुग्मन (Synapsis) होता है जिसके बाद गुणसूत्र पृथक् होकर पृथक्-पृथक् युग्मों में चल जाते हैं।
सूत्रयुग्मन के दौरान, गुणसूत्रों के 'खण्डों' का विनिमय होता है। ऐसी स्थिति में, गुणसूत्र पर निकटवर्ती जीनों के अलग-अलग होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। एक-दूसरे से दूर स्थित जीनों के पृथक्करण की सम्भावना अधिक होती है । यही तथ्य सहलग्नता का आधार है। मॉर्गन ने ही सहलग्नता की तीव्रता का विचार दिया। इसके अनुसार सहलग्नता की तीव्रता, सहलग्नी जीवों के बीच की दूरी की व्युत्क्रमी होती है। गुणसूत्र पर दो जीन जितने निकटवर्ती होंगे (दूरी जितनी कम होगी) उनके बीच सहलग्नता उतनी ही तीव्र होगी।
सहलग्नता का गुणसूत्री सिद्धान्त (Chromosome Theory of Linkage)
मॉर्गन के अनुसार सहलग्न जीन की क्षमता उसमें वास्तविक पुनर्युग्म (Original combination) के रूप में उसी स्थिति में होती है, जिस स्थिति में वे गुणसूत्र पर लगे थे। सहलग्नता की शक्ति वास्तव में गुणसूत्र में उपस्थित सहलग्न जीन्स के बीच की दूरी पर निर्भर करती है।
सहलग्नता प्रायोगिक रूप से जन्तुओं व पौधों दोनों में पायी जाती है। मॉर्गन ने सहलग्नता पर किये गये अपने अध्ययन के आधार पर निम्न निष्कर्ष निकाले-
- जीन्स गुणसूत्रों (Chromosomes) पर रेखीय क्रम (Linear fash- ion) में स्थित होते हैं।
- जीन्स जो कि सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं, एक ही गुणसूत्र पर स्थित होते हैं।
- सहलग्न (Linked) जीन्स वंशागति के समय स्वतः मूल समूहों में ही रहते हैं।
- समीप स्थित जीन्स अधिक सहलग्नता दर्शाते हैं परन्तु जो सहलग्न जीन्स एक-दूसरे से अधिक दूरी पर स्थित होते हैं, जीन विनिमय (Crossing over) के समय उनके पृथक् होने की सम्भावना अधिक होती है।
- एक या अधिक जोड़े के प्रभावी जीन एक गुणसूत्र पर और उनके अप्रभावी एलील्स जोड़े दूसरे गुणसूत्र पर हों तो इस व्यवस्था को सिस व्यवस्था (Cis arrangement) कहते हैं, परन्तु यदि प्रभावी एलील में से एक एवं अप्रभावी एलील में से एक गुणसूत्र पर तथा इसी तरह दूसरा जोड़ा दूसरे गुणसूत्र पर हो (Ab/aB) तो इसे ट्रांस व्यवस्था (Trans arrangement) कहते हैं।
सहलग्नता विश्लेषण (Linkage Analysis)
इसके लिए समय-समय पर विभिन्न वैज्ञानिकों ने परिकल्पनाएँ एवं सिद्धान्त प्रस्तुत किये हैं जो निम्न प्रकार हैं-
सहलग्नता की कपलिंग एवं रिपल्सन परिकल्पना (Coupling and Repulsion Hypothesis of Linkage)
सन् 1906 में बाटसन एवं पुन्नेट (W. Bateson and R. C. Punnett) ने उपयुक्त तथ्य की वास्तविकता जानने के लिए अपने प्रयोग मटर (Pisum sativum) पर किए। उन्होंने लाल पुष्प, गोल परागकण (bbll) वाले पौधे का संकरण नीले पुष्प, लम्बे परागकण (BB LL) वाले पौधे से कराया। नीला (B) एवं लम्बाई (L) का गुण दो अलग जीन्स द्वारा नियन्त्रित होता था जो प्रत्येक लाल (b) एवं गोल (l) गुण के लिए अपने-अपने युग्मविकल्पी (Alleles) पर प्रभावी (Dominant) थे।
मेण्डल दूसरे नियमानुसार F2 सन्ततियों में 9: 3:3: 1 लक्षण प्रारूप (Pheno- type) अनुपात प्राप्त होना चाहिए। किन्तु बाटसन तथा पुन्नेट ने देखा कि इस अनुपात के विपरीत F2 पीढ़ी में निम्न प्रकार सन्ततियाँ प्राप्त होती हैं जिनमें अधिकतर पुष्प नीले रंगएवं लम्बे परागकण (BB LL) तथा लाल फूल एवं गोल परागकण (bb ll) वाले वर्ग अधिकतर उत्पन्न हुए जबकि नीले फूल एवं गोल परागकण (BB ll) तथा लाल पुष्प एवं लम्बे परागकण (bb LL) वाले वर्ग कम प्रकट हुए।
अर्थात् माता-पिता के समान लक्षण प्रदर्शित करने वाली सन्ततियों की संख्या सम्भावित संख्या से बहुत अधिक प्राप्त होती है तथा पुनर्गठित (Recom- bined) लक्षणों को प्रदर्शित करने वाली सन्ततियाँ कम संख्या में प्राप्त होती हैं।
नर तथा मादा जनकों में युग्मकों (Gametes) के निर्माण का अध्ययन करने पर यह देखा जाता है कि BB LL x bb ll प्रकार के संकरण में B तथा L अथवा b तथा l एलील एक ही जनक से आने पर युग्मक में उपस्थित रहते हैं और ये सन्तति में प्रवेश करते हैं। इसी प्रकार BB ll x bb LL संकरण में B तथा l (Bl) अथवा b तथा L (bL) युग्मविकल्पी साथ-साथ युग्मक् में आते हैं तथा सन्तति में प्रवेश करते हैं। ऐसी अवस्था जिसमें एलील युग्मों के प्रभावी एलील साथ-साथ रहते हों बन्धन (Coupling), कहलाती है और ऐसी अवस्था जिसमें एक एलील का प्रभावी दूसरे के अप्रभावी के साथ रहता है, प्रतिकर्षण (Repulsion) कहलाती है।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक मॉर्गन (Morgan) ने सहलग्नता (Linkage) का अध्ययन फलमक्खी (Drosophila) में किया। उन्होंने बताया कि जो जीन्स एक ही सूपर स्थित होते हैं। उन्हीं के कारण सहलग्नता उत्पन्न होती है और इसकी तीव्रता गुणसूत्रों में जीन्स की दूरी पर निर्भर करती है।
सहलग्नता के प्रकार (Types of Linkage)
सहलग्नता मुख्यतया दो प्रकार की होती है-
- पूर्ण सहलग्नता (Complete Linkage)
- अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage)
1. पूर्ण सहलग्नता (Complete Linkage)
जब जीन्स किसी एक ही युग्मविकल्पी (Allele) अर्थात् गुणसूत्र युग्म के एक ही सदस्य पर उपस्थित रहते हैं तथा उसी जनक (Parent) से एक समय स्थानान्तरित होते हैं तो यह गुण पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage) कहलाता है। प्रायः जीवधारियों में पूर्ण सहलग्नता नहीं पायी जाती है। अतः पौधों तथा जन्तुओं में सहलग्न जीन्स (Linked genes) के बीच जीन विनिमय (Crossing over) होता है, जिसके कारण जीन्स आंशिक सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण -
ड्रोसोफिला में पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage in Drosophila)– मॉर्गन (Morgan, 1915) ने नर फलमक्खी (Dro- sophila) में पूर्ण सहलग्नता का अध्ययन किया। इन्होंने अपने प्रयोग में भूरे रंग (brown-GG) एवं अवशेषी पंखों (vestigial wing = vv) वाली फलमक्खी का संकरण काले रंग (black-gg) एवं लम्बे पंख (long wing-VV) वाली फलमक्खी से कराया तो F1 पीढ़ी में भूरे रंग एवं लम्बे पंखों वाली (GgVv) मक्खियों की सन्तति प्राप्त हुई। जब दोनों जीन युग्मों के लिए विषमयुग्मजी F1 नरों का द्विअप्रभावी (Double recessive) अर्थात् काले रंग एवं अवशेषी पंखों (ggvv) वाली मादाओं के साथ परीक्षण संकरण (Test cross) कराया जाता है तो उनसे उत्पन्न सन्ततियों में पुनर्गठित (Recombinant) वर्ग प्राप्त नहीं होता है अर्थात् सभी सन्ततियाँ जनकीय प्रकार की प्राप्त होती हैं जो भूरे रंग एवं अवशेषी तथा काले रंग एवं लम्बे पंख के लक्षण 1: 1 अनुपात द्वारा प्रदर्शित करती हैं।
2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage)
जब सहलग्न जीन्स के अलग-अलग रहने की सम्भावना रहती है तब इसे अपूर्ण सहलग्नता (In- complete Linkage) कहते हैं। यह सहलग्नता तब पायी जाती है जब सहलग्न जीन्स एक-दूसरे से बहुत दूर स्थित होते हैं। दूरी के कारण अर्द्धसूत्री विभाजन के समय जीन विनिमय द्वारा इन जीनों के पृथक् होने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
उदाहरण -
मक्का में अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage in Maize) - हचिन्सन (Hutchinson) ने मक्का की ऐसी प्रजाति जिसके बीज रंगीन, भरे हुए (Coloured = Aleuron and Filled with Endosperm) और दूसरी प्रजाति जिसके बीज रंगहीन, कम भरे या सिकुड़े (Colourless or shrinked) थे, के बीच संकरण (cross) कराया। इन दोनों का जीन प्रारूप (Genotype) क्रमश: CC SS एवं cc ss के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।
'C' जीन जो रंगीन अवस्था को दर्शाता है 'C' पर प्रभावी होता था और जीन 'S' जो भरेपन को दर्शाता है 'S' पर प्रभावी था। इस प्रकार CCSS तथा ccss के संकरण में F1 में सभी बीज रंगीन तथा भरे हुए थे जिनका जीन प्रारूप CS/cs था।
इसका अर्थ यह हुआ कि प्रभावी युग्मविकल्पी जो आपस में सहलग्न हैं उन्हें अप्रभावी सहलग्न जीन के ऊपर प्रदर्शित किया गया।
ऐसी सम्भावना थी कि अगर जीन्स स्वतन्त्रतापूर्वक अपव्यूहित (Inde - pendently assorted) होंगे तो F1 पीढ़ी की सन्ततियाँ अनुमानित रूप से CS, Cs, cS, cs प्रकार के युग्मक समान अनुपात में बनायेंगी परन्तु यह देखा गया है कि 96.4% CS एवं cs युग्मक का निर्माण होता है जो स्पष्ट करता है कि CS तथा cs सहलग्न जीन हैं और एक साथ स्थानान्तरित होते हैं। इस प्रकार युग्मकों का बनना यह प्रदर्शित करता है कि सहलग्न जीन्स के दो विस्थल (Loci) के बीच विनिमय नहीं हो पाया है, अगर विनिमय होता भी है तो Cs तथा cS युग्मक बनते हैं और अनुपात केवल 3.6% होता है।
जब CS/cs F1 संकर और दोहरे अप्रभावी (Double recessive) जनक के बीच परीक्षार्थ संकरण कराया गया तो जो सन्ततियाँ उत्पन्न हुईं उनमें जनक समलक्षणी 96.4% और पुनर्संयोजित प्रकार 3.6% था। अगर जीन्स में दोनों युग्मों का स्वतन्त्र अपव्यूहन हुआ होता तो सभी चार प्रकार के समलक्षणी 1 : 1 : 1 : 1 के अनुपात में उत्पन्न हुए होते हैं, परन्तु जीन्स सहलग्नता के कारण रंगीन - भरे एवं रंगहीन - कम भरे बीज अपेक्षाकृत रंगीन-कम भरे एवं रंगहीन - भरे बीजों की तुलना में अधिक संख्या में पैदा हुए।
उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त गुणसूत्रों की प्रकृति के आधार पर आधुनिक आनुवंशिकीविज्ञ सहलग्नता को पुनः दो अलग वर्गों में बाँटते हैं-
लिंग सहलग्नता (Sex Linkage)
यह विशेष प्रकार की सहलग्नता है जो उन जीन्स के बीच पायी जाती है जो लिंग गुणसूत्रों में उपस्थित होते हैं। समजात (Homologous) व विषमजात (Non-homologous) X और Y गुणसूत्रों के खण्डों की स्थिति के अनुसार ये जीन विनिमय (Crossingover) नहीं कर पाते हैं लेकिन अपूर्ण रूप से ये जीन्स लिंग सहलग्न (Sex linked) माने जाते हैं।
वंशागति और विभिन्नता के सिद्धांत
लिंग सहलग्नता की वंशागति (Inheritance of Sex Linkage)
मॉर्गन (Morgan, 1910 ) ने सर्वप्रथम फलमक्खी (Drosophila melanogoster) में लिंग सहलग्नता की खोज की थी। इस मक्खी में नर व मादा में क्रमश: XY व XX लिंग गुणसूत्र होते हैं। इसकी आँखों का रंग लिंग सहलग्न होता है। आँख के रंग के युग्मविकल्पी X गुणसूत्र पर स्थित होते हैं और Y गुणसूत्र से सम्बन्धित नहीं होते हैं। नर के प्रदर्शन के लिए इसमें केवल एक लिंग - सहलग्न अप्रभावी लक्षण होता है जबकि मादा में इस प्रकार के दो जीन्स होते हैं। सामान्य आँख का रंग लाल होता है जो उत्परिवर्त सफेद आँखों (Mu- tant white eye) पर प्रभावी होता है।
ड्रोसोफिला में निम्न संकरणों द्वारा इसकी वंशागति को दर्शाया जा सकता है-
1. श्वेत नेत्र वाली मादा x लाल नेत्र वाला नर (White eyed female × Red eyed male)
फलमक्खी में सफेद नेत्र रंग सामान्य लाल नेत्र रंग के प्रति अप्रभावी (Recessive) होता है। यदि सफेद नेत्र वाली मादा मक्खी का संकरण लाल नेत्र वाली नर मक्खी से कराया जाता है तो F1 सन्तति में समस्त मादा लाल नेत्र वाली और समस्त नर सफेद नेत्र वाली होती हैं। जब F1 सन्ततियों में प्राप्त इन लाल नेत्र वाली मादा मक्खियों का इसी सन्तति की सफेद नेत्र वाली नर मक्खियों के साथ संकरण किया जाता है तो F2 सन्तति में प्राप्त कुल मादा मक्खियों में 50% लाल नेत्र वाली तथा 50% श्वेत नेत्र वाली होती हैं। इसी प्रकार कुल प्राप्त नर मक्खियों में 50% लाल नेत्र वाली और 50% श्वेत नेत्र वाली होती हैं।
2. लाल नेत्र वाली मादा सफेद नेत्र वाले नर (Red eyed female × White eyed male)
जब लाल नेत्र वाली मादा मक्खी का संकरण सफेद नेत्र वाली नर मक्खी से कराया जाता है तो F सन्तति में नर और मादा सभी मक्खियाँ लाल नेत्र वाली होंगी। जब F1 में स्व-संकरण कराया गया तो F2 सन्तति की सम्पूर्ण मादा मक्खियाँ लाल नेत्र वाली हुईं। परन्तु F2 सन्तति में प्राप्त समस्त नर मक्खियों में 50% लाल नेत्र वाली और 50% सफेद नेत्र वाली हुईं।
इन प्रयोगों से स्पष्ट होता है कि लिंग गुणसूत्रों पर स्थित एक विशिष्ट लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में लिंग परिवर्तित करता है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि एक लिंग सहलग्नी लक्षण माता के पुत्र में स्थानान्तरित होता है और पिता से पुत्र में कभी नहीं जाता।
अन्तरा गुणसूत्रीय सहलग्नता (Inter Chromosomal Linkage)
लैंगली (Langley, 1945) ने इस सहलग्नता को असत्य सहलग्नता (False linkage) कहा और बताया कि विभिन्न सहलग्न समूहों में उपस्थित आनुवंशकों के बीच एक प्रकार की मिथ्या सहलग्नता (Pseudo linkage) है। इस सहलग्नता में एक जोड़ा सहलग्न आनुवंशिकों (A pair of linked gene) के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति सहलग्नता होती है। इसलिए इन्हें सहलग्न क्रम (Linked series) में रखते हैं। इस सहलग्नता में अर्द्धसूत्री विभाजन (Meio- sis) से गुणसूत्र खण्डों में आकस्मिक परिवर्तन हो जाता है लेकिन परिवर्तन काफी धीरे-धीरे आता है।
सहलग्नता समूह (Linkage Group)
प्रयोगों द्वारा प्राप्त परिणामों के अनुसार जीन्स जो एक-दूसरे से सहलग्न (Linked) होते हैं, एक समूह के रूप में रहते हैं जिन्हें सहलग्नता समूह ( Linkage group) कहते हैं।
सहलग्नता समूहों की संख्या किसी भी जाति (Species) में उनमें उपस्थित सूत्र जोड़ों पर निर्भर करती है। सहलग्नता समूहों की संख्या किसी भी जीव में उपस्थित गुणसूत्र जोड़ों की संख्या में बराबर होती है। इसे इस प्रकार भी दर्शा सकते हैं कि सहलग्नता समूहों की संख्या (H) = गुणसूत्र जोड़ों की संख्या (M)।
अर्थात् H = M
यहाँ H = सहलग्नता समूहों की संख्या
M = क्रोमोसोम जोड़ों की संख्या
लेकिन यह नियम समस्त जीवों पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके कुछ अपवाद भी पाये जाते हैं।
विभिन्न जीवों के गुणसूत्र एवं सहलग्न समूहों की संख्या
जीव (Organism) | गुणसूत्र जोड़ों की संख्या (M) | सहलग्नता समूहों की संख्या (H) |
---|---|---|
मक्का (Maize) | 10 | 10 |
फलमक्खी (Drosophila) | 4 | 4 |
खरगोश (Rabbit) | 22 | 6 |
गिनी पिग (Guinea pig) | - | 1 |
चूहा (Mouse) | 20 | 13 |
मानव (Human) | 23 | 23 |
सहलग्नता को प्रभावित करने वाले कारक
जीनों की दूरी के अतिरिक्त कुछ वातावरणीय कारक सहलग्नता को प्रभावित करते हैं जो निम्न प्रकार हैं-
- आयु (Age) - बढ़ती हुई आयु के कारण जीन विनिमय की सम्भावना कम होती है जिससे सहलग्नता की तीव्रता बढ़ती है।
- ताप (Temperature) - ताप के बढ़ने से कियाज्मा निर्माण की सम्भावना बढ़ती है जिससे सहलग्नता की तीव्रता कम होती है।
- X-किरणें (X-rays) -X - किरणों के प्रभाव से सहलग्नता कम होती है।
सहलग्नता का महत्व
- गुण संकरण (Hybridization) - पौधों एवं जन्तुओं में गुण संकरण के द्वारा उत्पन्न किये गये गुण संकरों (Hybrids) की छँटनी करने और उनकी प्रकृति (nature) ज्ञात करने में सहलग्नता का विशेष महत्व है।
- गुण संकरों में आये या आने वाले जनक लक्षणों (Parental char- acters) का सहलग्नता द्वारा अध्ययन किया जाता है।
- कुछ विशेष जीन्स जिन्हें मार्कर जीन्स (Marker genes) कहते हैं, सहलग्न (Linked) होते हैं। इन्हीं जीन्स की सहायता से गुणात्मक लक्षणों जैसे- उनमें विभिन्न रंगों का पाया जाना व मात्रात्मक लक्षणों जैसे- पौधे के दानों में पायी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ इत्यादि का नियन्त्रण किया जाता है।
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