मृदा प्रदूषण क्या है? प्रकार, प्रभाव, रोकथाम | Soil Pollution in hindi

मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)

घरेलू क्रियाओं एवं निर्माणकारी इकाइयों द्वारा उत्पादित ठोस पदार्थों को फेंकने से मृदा प्रदूषित होती है। ये पदार्थ मृदा के भौतिक एवं रासायनिक संगठन में परिवर्तन लाते हैं। अतः मृदा प्रदूषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-
मृदा में हानिकारक पदार्थों के जमाव या लाभदायक पदार्थों की हानि से इसकी संरचना में होने वाले परिवर्तन के कारण इसकी उपजाऊ क्षमता का नाश होना मृदा प्रदूषण कहलाता है।
Soil-Pollution-in-hindi
'मृदा में विभिन्न प्रकार के लवण, खनिज तत्त्व, कार्बनिक पदार्थ, गैसें तथा जल एक निश्चित अनुपात में होते हैं। मृदा में उपर्युक्त पदार्थों की मात्रा और अनुपात में विभिन्न कारणों द्वारा उत्पन्न परिवर्तन मृदा प्रदूषण कहलाता है।"
मृदा निर्जीव नहीं है, उसमें असंख्य सूक्ष्म जीव निवास करते हैं, जो बहुत सारे अपशिष्टों का अपघटन करके प्रदूषण की मात्रा को कम करते हैं।
किंतु यदि अपशिष्टों की मात्रा सीमा का उल्लंघन कर जाए तो मृदा रुग्ण बन जाती है और ऐसी रुग्ण स्थिति को 'मृदा प्रदूषण' कहा जाता है। इस तरह मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में अवांछित परिवर्तन, जिससे भूमियों, मनुष्यों, जीवों तथा फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, 'मृदा प्रदूषण' कहलाता है।

मृदा प्रदूषण दो तरह का हो सकता है -
एक तो वह, जिसमें मृदा से लगातार उसके अवयवों का ह्रास या विलगन हो। इसे नकारात्मक / ऋणात्मक या अहैतुक / अप्रासंगिक प्रदूषण कहेंगे। शायद यह प्रदूषण अनंतकाल से होता चला आ रहा है। चाहें तो इसे प्राकृतिक मृदा प्रदूषण भी कह सकते हैं। यह बहुत ही मंदगति से एवं अलक्षित रूप में घटित होता रहता है। इधर पर्यावरणविदों ने इसकी पहचान करके इसे शून्यवत् प्रदूषण कहा है। यह कई तरह से घातक सिद्ध हुआ है— मृदा क्षरण, अम्लीयता, लवणीयता, आदि के रूप में। यह पर्वतों, मैदानों, घाटियों, खेतों में तीव्र या मंद गति से घटित होता रहता है। इससे होनेवाली क्षति, इसके अवयव, उनका मूल्य आदि सभी कुछ ज्ञात किए जा चुके हैं। यह जलवायु तथा भौगोलिक स्थिति के अनुसार घटित होता है। इस पर एक सीमा तक विजय पाना संभव है । उदाहरणार्थ - मृदा संरक्षण की विधियाँ अपनाकर इसे न्यूनतम किया जा सकता है। मृदा प्रदूषण का दूसरा प्रकार वह है, जिसकी नित्य चर्चा चलती है, यह सहैतुक या प्रासंगिक है। मुख्यतः कृषि तथा उद्योग इसके लिए दोषी हैं, किंतु वास्तव में बढ़ती आबादी और भूमि पर अधिक दबाव के कारण ही यह सब हो रहा है।
यह सबको अच्छा लगता है कि कृषि से अधिक अन्न उपजे या खेत सोना उगले, क्योंकि इस तरह खाद्य समस्या का समाधान होता है। किंतु इस तरह मृदा पर क्या बीतती है? शायद इसे पृथ्वी-पुत्र किसान भी नहीं जानता । यदि वह जान जाए तो शायद कृषिजन्य प्रदूषण काफी कम हो जाए। स्मरण रहे, यदि मृदा प्रदूषित है, तो जल और वायु में भी प्रदूषण होगा। क्या गोबर के गड्ढे, सनई आदि सड़ाए जानेवाले स्थान या कूड़े-करकट के स्थल बदबू से रहित हो सकेंगे? यह तो वायु प्रदूषण को जन्म देना है। धरती वायु को प्रदूषित कर सकती है तो क्या वायु पृथ्वी को नहीं प्रदूषित कर सकती है? इसी तरह यदि जल मृदा को प्रदूषित कर सकता है तो मृदा भी जल को प्रदूषित कर सकती है।
इसी तरह विभिन्न उद्योग भी मृदा प्रदूषण को बढ़ानेवाले हैं। आज विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त ऊर्जा स्रोतों के उपभोग के कारण जिस तरह वायु प्रदूषण का जन्म होता है, शायद उस ओर लोगों का ध्यान अधिक है, किंतु ये उद्योग विशेषकर रासायनिक उद्योग, जितना अपशिष्ट निकालते हैं, इसका निपटान भूमि में या नदियों / समुद्रों में होता है। चोरी-छिपे हो या खुले रूप से, अपशिष्टों की कब्रस्थली मृदा ही है। भला ऐसा कौन सा उद्योग होगा, जिससे दूषित जल न निकलता हो, जिससे व्यक्त ठोस पदार्थ या कूड़ा-कचरा / मलबा न निकलता हो? उद्योगों के फलस्वरूप आसपास के खेतों में न जाने कितनी मात्रा में भारी धातुएँ मिट्टी में प्रवेश पा चुकी हैं और यदि स्थिति नहीं सुधरी तो प्रवेश पाती रहेंगी । वस्तुतः मृदा धात्विक प्रदूषण सबसे घातक है।
इस प्रदूषित मृदा का क्या भविष्य होगा और वर्तमान क्या है? इसी को सोचकर रोम खड़े हो जाते हैं। जैसे सिर से बाल गायब हो जाते हैं और चाँद निकल आती है, उसी तरह स्थल पर अत्यधिक मृदा प्रदूषण से 'विषैले द्वीप' बन जाएँगे। जब कोई पशु उनमें उगी वनस्पति पर मुँह मारेगा तो धराशायी हो जाएगा, यदि नन्हा मुन्ना एक मुट्ठी धूल मुँह में फाँक लेगा तो उसका प्राणांत हो जाएगा, यदि किसान बीज बोएगा तो अंकुर ही नहीं निकलेंगे।
हमारे देश में मृदा प्रदूषण का एक कारण इसका कुप्रबंध भी है। एक अनुमान के अनुसार, इसी कुप्रबंध के कारण हमारे देश की कुल धरती के लगभग 53 प्रतिशत भाग पर खेती की जा रही है। कुल 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि के लगभग 60 प्रतिशत भाग में भूमि संरक्षण की नितांत आवश्यकता है। पर्यावरण विभाग के अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 6 अरब टन मृदा बहकर समुद्र में चली जाती है। यह मृदा अपने साथ 53 लाख 70 हजार टन नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे मुख्य पोषक तत्त्व बहा ले जाती है।
मृदा का प्रदूषण कई प्रकार से मृदा में बाह्य वस्तुओं के आकर मिलने और मिल करके प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने अथवा मृदा में से किन्हीं वस्तुओं के निकल जाने से संभव है। मृदा मनुष्य तथा अन्य जीवों द्वारा उत्सर्जित व्यर्थ पदार्थों, घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्टों की प्रतिग्राहिका की तरह है। चाहे वायु प्रदूषण हो या जल प्रदूषण, इन सबमें मृदा भी सहभागिनी है, इसलिए मृदा में जल या वायु की अपेक्षा प्रदूषण की संभावना अधिक है। कोई भी पदार्थ, जो में मिलकर उसकी उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डाले, वह मृदा प्रदूषक है। इन प्रदूषकों के कारण मृदा की जिस तरह सामान्य से भिन्न स्थिति हो जाती है, वह मृदा प्रदूषण कहलाती है और मृदा स्वयं प्रदूषित बन जाती है। प्रदूषित मृदा का अर्थ है कि ऐसी मृदा, जो किसी भी प्रदूषण की चपेट में आकर अपनी सहज पूर्व स्थिति से भिन्न बन चुकी हो, या बन रही हो ।
हमारी मृदा निरंतर प्रदूषित होती जा रही है । मृदा की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाएँ बिगड़ती जा रही हैं। सघन खेती एवं रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है । मृदा की उर्वरा शक्ति कम हो रही है जिसके परिणामस्वरूप पर्याप्त उत्पादन नहीं मिल पा रहा है।
वर्तमान परिवेश को देखते हुए मृदा को प्रदूषित होने से बचाना अत्यंत आवश्यक है, जिससे मृदा के उर्वरा शक्ति का नुकसान न हो सके। इसके लिए फसलों में प्रयोग किए जानेवाले रासायनिक उर्वरक के अनुचित व असंतुलित मात्रा में बिना सूझ-बूझ के प्रयोग में कमी लाने की आवश्यकता है, अन्यथा मृदा में उपस्थित लाभकारी जीवाणु और जीव-जंतु विलुप्त हो जाएँगे और इनकी उपस्थिति में मृदा में होनेवाली विभिन्न अपघटन तथा विघटन इत्यादि क्रियाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, जिससे पोषक तत्त्वों एवं खनिज लवणों का बहुत बड़ा हिस्सा पौधों को प्राप्त नहीं हो सकेगा। साथ ही रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती कीमतों व उनके कम उत्पादन होने की वजह से लघु व सीमांत किसान बुरी तरह से प्रभावित होंगे। अतः फसलों से अच्छी गुणवत्ता की अधिक पैदावार लेने के लिए तथा जमीन के उपजाऊपन को बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित प्रयोग आवश्यक है। इसके लिए खेती में रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ पौधों को पोषक तत्त्व प्रदान करनेवाले अन्य स्रोतों; जैविक खादों के प्रयोग की आवश्यकता है।

मृदा प्रदूषकों के प्रकार (Types of Soil Pollutants)

कुछ मृदा प्रदूषक निम्न प्रकार हैं-

1. घरेलू अपशिष्ट (Domestic Wastes)
इसमें रसोई का कचरा (Kitchen Garbage), टूटी बोतलें (Broken Bottles), क्लॉथ रेग्स (Cloth Rags), राख (Ash), पॉलीथीन (Polythene), मलत्याग, मृत पशु निस्तारण आदि सम्मिलित हैं।

2. औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Wastes)
इसमें फ्लाई ऐश, धातु स्क्रैप (Metal Scraps), रंजक, प्लास्टिक, ब्राइन मड (Brine Mud) आदि लघु औद्योगिक पदार्थ सम्मिलित हैं, जैसे- कागज उद्योग, रसायन, रबर, चीनी, कपड़ा, सीमेण्ट, पीड़कनाशी, पेट्रोलियम उत्पाद, चर्मशोधन, रिफानरी आदि बड़े उद्योगों से निकले अपशिष्ट।

कुछ उद्योग एवं उनसे निकले मृदा प्रदूषक
उद्योग मृदा प्रदूषक
कागज उद्योग निलम्बित कण
स्टील उद्योग सायनाइड्स एवं फिनोल्स
भट्टियाँ फ्लाई ऐश
कपड़ा उद्योग क्लोराइड आयन
डिस्टिलरीज पोटैशियम लवण
डेरी उद्योग तेजाब

3. अम्ल वर्षा (Acid Rain)
अम्ल वर्षा वायु प्रदूषण के कारण होती है। यह मृदा में आकर मृदा प्रदूषण उत्पन्न करती है।

4. कृषि रसायन और उर्वरक (Agricultural Chemicals and Fertilizers)
विभिन्न प्रकार के उर्वरक, कवकनाशी, खरपतवारनाशी आदि जिनका प्रयोग उत्पादकता बढ़ाने एवं कीटपीड़कों से बचाव करने के लिए किया जाता है मृदा प्रदूषक हैं।

5. जैविक रोगकारक (Biological Pathogens)
मानव मल-मूत्र एवं पशुओं के बाड़ों से निकला अपशिष्ट मृदा में फेंकने से मृदा प्रदूषण होता है। मानव मल में अनेक प्रकार के रोगकारक होते हैं जो अनेक मृदोड़ रोगों को मानव सहित पौधों एवं जन्तुओं में उत्पन्न करते हैं।

6. प्लास्टिक (Plastic)
सबसे अधिक मृदा प्रदूषण कारक प्लास्टिक है, क्योंकि इसके विघटन में लाखों वर्ष लग सकते हैं, जबकि कार्बनिक अपशिष्ट जैसे सब्जियाँ, फलों के छिलके, मृत शरीर आदि एक या दो सप्ताह में विघटित हो जाते हैं।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
19 फरवरी, 2015 को मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारम्भ किया । इस केन्द्रीय योजना के अन्तर्गत किसान अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराते हैं। इस योजना का उद्देश्य मिट्टी की जाँच के द्वारा आवश्यक उर्वरकों व पोषक तत्त्वों की समुचित मात्रा का उपयोग करके कृषि उत्पादकता में वृद्धि करता है। यह वस्तुतः ऐसा कार्ड है जिसमें मिट्टी के स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति के विषय में सूचनाएँ संग्रहीत करता हैं । इस योजना के अन्तर्गत अगले तीन वर्षों में 14 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किए जाएँगे।

मृदापरीक्षक
मृदापरीक्षक एक लघु प्रयोगशाला है जिसके द्वारा मृदा परीक्षण किया जाता है। इसका लोकार्पण 18 फरवरी, 2015 को किया गया। इसका विकास भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल ने किया है। मृदापरीक्षक एक डिजीटल मोबाइल मिनीलैब / मिट्टी परीक्षण किट है। किसानों को उनके घर पर मिट्टी परीक्षण सेवा मुहैया कराने के लिए यह किट विकसित की गई है। इसके द्वारा किसान मृदा के सभी गुणों तथा पोषक तत्त्वों का निर्धारण करता है। यह मृदा प्रकार और फसल के अनुसार उर्वरक अनुशंसाएँ भी प्रदर्शित करता है, जो किसान के मोबाइल फोन पर सीधे एस. एम. एस. द्वारा उपलब्ध हो जाती है।

मृदा प्रदूषण के प्रकार (Types of Soil Pollution)

मृदा प्रदूषण दो प्रकार का होता है-
  1. ऋणात्मक मृदा प्रदूषण (Negative Soil Pollution)
  2. धनात्मक मृदा प्रदूषण (Positive Soil Pollution)

1. ऋणात्मक मृदा प्रदूषण (Negative Soil Pollution)
इसमें मृदा से कुछ लाभप्रद पदार्थों की हानि होती है। इसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं-
  • मृदा अपरदन (Soil Erosion),
  • अतिचारण (Overgrazing),
  • विकासीय गतिविधियाँ (Developmental Activities)।

2. धनात्मक मृदा प्रदूषण (Positive Soil Pollution)
इसमें मृदा में अवांछित पदार्थों का जमाव होता है जिससे मृदा मानव उपयोग की नहीं रहती है । यह अग्र के कारण होता है-
(i) पीड़कनाशी एवं अपतृणनाशी (Pesticides and Weedi- cides) - निम्न प्रकार हैं-
  • (a) क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स – DDT, क्लोरडेन (Chlordane), एल्ड्रिन (Aldrin) B. H.C, DDE, हैप्टाक्लोर (Heptachlor), ईन्ड्रिन (En- drin), डाइएल्ड्रिन (Dialdrin) आदि।
  • (b) कार्बनिक कीटनाशक - आर्गेनोफॉस्फेट (मेलेथियोन, डायाजोनिन, ट्राइथियॉन, पैराथियॉन, एथियॉन, टेट्राइलाइल फास्फेट) एवं कार्बोनेट्स ।
  • (c) अकार्बनिक कीटनाशक - प्राय: आर्सेनिक व सल्फर युक्त ।
  • (d) अपतृणनाशी - खरपतवार नियन्त्रण के लिए प्रयुक्त जैसे - 2, 4-D.

(ii) औद्योगिक अपशिष्टों को मृदा में फेंका जाना

(iii) खनन धूल (Mine Dust) - खनन क्षेत्रों में प्रदूषण का प्रमुख कारक।

(iv) उर्वरक (Fertilizers) - अनियन्त्रित एवं अतिरिक्त प्रयोग ।

(v) अन्य (Other) - लेड, फ्लोराइड, प्रदूषित जल आदि का निस्तारण ।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil Pollution)

मृदा प्रदूषण का प्रभाव स्वयं मिट्टी पर तो पड़ता ही है, उससे मिट्टी पर उगाई जाने वाली फसलों तथा अन्य उगने वाली वनस्पतियों, मिट्टी में रहने वाले तथा वनस्पतियों पर जीवन निर्वाह करने वाले जीव-जंतुओं तथा मनुष्य पर भी पड़ता है।
प्रदूषण के फलस्वरूप मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों में परिवर्तन आ सकता है। मिट्टी की भौतिक दशा बिगड़ने से मृदा संरचना में परिवर्तन आता है। मिट्टी की वातन (Aeration) क्रिया प्रभावित होती है जिससे सूक्ष्मजीवों का ह्रास होता है। मृदा में रासायनिक तत्वों (विशेषतया भारी धातुओं) के संचय से फसलें प्रभावित होती हैं। यही नहीं, जल ( सतही तथा भूमिगत जल) का प्रदूषण बढ़ता है।
अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से अनेक उपयोगी सूक्ष्मजीव नष्ट हो सकते हैं, जिससे कार्बनिक पदार्थों का विघटन प्रभावित हो सकता है, नाइट्रेट का बनना रुक सकता है। कीटनाशकों के प्रयोगों से मिट्टी में केंचुओं की संख्या भी घट जाती है। मृदा अपरदन के फलस्वरूप पोषण तत्वों का ह्रास होने से वनस्पतियां ठीक से वृद्धि नहीं कर पातीं।
अन्ततोगत्वा मृदा प्रदूषण का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। कूड़े-करकट के सड़ने से दुर्गंध पुलती है, जिससे श्वास लेने में तकलीफ होती है। प्रदूषित मृदा में उगी फसलों का उपयोग करने से अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
मृदा के क्षारीय या अम्लीय बनने से अन्नोत्पादन घटता है। ऐसी मृदाओं को उर्वर बनाने में काफी धन और जन की आवश्यकता पड़ती है। प्रदूषित मृदाओं में पशुचारण से पशुधन की हानि होती है।
  • मृदा प्रदूषण अनेक प्रकार के पादप रोग उत्पन्न करता है।
  • उर्वरकों का अतिरिक्त प्रयोग मृदा में प्राकृतिक जीवाणु आबादी को कम करता है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट मृदा के आविषालुता स्तर को बढ़ाते हैं । सन् 1970 में जापान में मृदा प्रदूषण से उत्पन्न इटई - इटई (Itai-itai) रोग के कारण 200 व्यक्ति मारे गये।
  • फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा फ्लोरोसिस (fluorosis) उत्पन्न करती है।
  • घरेलू वाहितमल द्वारा प्रदूषित मृदा से अनेक रोग जैसे- टिटेनस, इन्टेरिक फीवर, गिगार्डियासिस आदि रोग मनुष्य में उत्पन्न होते हैं।
  • उर्वरकों के अति प्रयोग से मृदा में नाइट्रेट्स का एकत्रीकरण हो जाता है जिससे मनुष्य में सायानोसिस या ब्लू बेबी संलक्षण (Blue Baby Syndrome) उत्पन्न हो सकता है।
  • नाइट्रेट्स से मनुष्य में रुधिर द्वारा O2 वहन कम हो जाता है जिससे मीथीमोग्लोबीनिमिया (Methaem-oglobinaemia) हो जाता है।
  • खनन धूल मृदा को बंजर कर देती है।
  • पोलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स (PCB) पीड़कनाशी, तन्त्रिका रोग तथा त्वचा व फुफ्फुस कैंसर उत्पन्न करते हैं।
  • गाजरघास (Parthenium) एक हानिकारक पेनट्रोपिकल खरपतवार (Pantropical Weed) है। यह फसल उत्पादकता को 31.5% मुख्यतया खरीफ फसलों (चुकन्दर, गाजर, प्याज आदि) को कम कर देता है।
  • टाटा ऊर्जा अनुसन्धान संस्थान (TERI) के हाल के सर्वे के अनुसार लगभग 800 लाख हेक्टेअर कृषि भूमि में उत्पादकता की कमी हुई है।
  • यूपैटोरियम (Eupatorium) एक विरल परजीवी और विषैला खरपतवार है जिसे स्थानीय लोग आसामलता कहते हैं। यह सिमली पाल रिजर्व फोरेस्ट में आनुवंशिक नुकसान पहुँचा रहा है।
  • अनेक पदार्थों से पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है।

मृदा प्रदूषण की रोकथाम (Prevention of Soil Pollution)

  1. घरेलू ठोस अपशिष्टों के निस्तारण के लिए प्रभावी युक्तियों का विकास करना चाहिए ।
  2. ठोस अपशिष्टों को पहले उपचारित और पुनः चक्रित कर लेना चाहिए तथा कम-से-कम मात्रा में निस्तारण करना चाहिए।
  3. उन्नत कृषि विधियाँ जल-पाथ में उर्वरकों के घुलने को कम कर सकती हैं।
  4. उचित कानून पास करने चाहिए और इनका बलपूर्वक पालन करना चाहिए। उल्लंघन करने वाले को कठोर दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  5. पब्लिक को जाग्रत तथा पारथीनियम एवं यूपेटोरियम जैसे खरपतवारों से परिचित कराना चाहिए।
  6. पुनः वनारोपण एवं घासों का रोपण करना चाहिए। भारतीय वन पॉलिसी का उद्देश्य पहाड़ी क्षेत्रों में 60% वन भूमि व मैदानी भागों में 20% भूमि रखने का है । वनीकरण में विदेशज जातियों के स्थान पर देशज जातियाँ रोपित की जानी चाहिए ।
  7. जनवरी 1998 में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक काल्पनिक विधि विकसित की है जिसमें रसायन अपशिष्टों (जैसे-- स्लज, एलम - स्लज एवं बाँस धूल) का प्रयोग करके कागज उद्योग एवं पल्प उद्योग के प्रवाह को सन्दूषण रहित किया जा सकता है।
  8. सन् 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी नॉन-फोरेस्ट गतिविधियों जैसे - प्लाईवुड मिलों, आरा मिल्स (Saw Mills) तथा वन क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।
  9. इंदिरा गाँधी कैनाल तथा राजस्थान कैनाल (Indira Gandhi Ca- nal or Rajasthan Canal) ने जैसलमेर के बंजर रेगिस्तान को हरा-भरा व धनी बना दिया है।
  10. अक्टूबर 1997 में नेशनल प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबन्धन टास्क फोर्स ने पॉलीथीन बैग के उत्पादन पर रोक लगाई है।
  11. नेशनल रिसर्च विकास कॉर्पोरेशन (NRDC) पूर्ण रूप से जैव निम्नीकृत होने वाले प्लास्टिक बैग के विकास के लिए कार्य कर रहा है।

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