राजनीति विज्ञान - परिभाषाएँ प्रकृति और क्षेत्र | Political Science Definition In Hindi

राजनीति विज्ञान

इक्कीसवीं सदी, वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण, तकनीकीकरण, संचार क्रान्ति जैसे तमगों से सुशोभित की जा रही है। राजनीति विज्ञान जो ईसा पूर्व चौथी सदी में पैदा हुआ निरन्तर गतिशील रहकर आज की इक्कीसवीं सदी में भी बना है। इस लम्बे सफर में राजनीति विज्ञान का स्वरूप, अध्ययन क्षेत्र, अध्ययन के उपकरण, उपागम, सिद्धान्त समयानुसार अनुकूलन करते हुए परिवर्तित व परिवर्धित होते रहे, जो अनुकूलन नहीं कर पाए मृत हो गए। राजनीति विज्ञान चूँकि मानवीय सामाजिक विज्ञान है, अतः गतिशीलता व परिवर्तन उसकी प्रकृति के अंग हैं।
राजनीति विज्ञान एक प्राचीनतम सर्वमान्य तथ्य है, जिसने प्राचीन काल में प्लेटो व अरस्तु से लेकर वर्तमान युग तक उल्लेखनीय प्रगति की है। यूनानियों को इसके जनक होने का श्रेय जाता है क्योंकि यूनानियों ने ही सबसे पहले राजनीतिक प्रश्नों को आलोचनात्मक और तर्क सम्मत चिन्तन की दृष्टि से देखा।
  • "राजनीति विज्ञान विषय के अध्ययन का प्रारम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है ।" - डॉ. गार्नर
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर ही वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास भी समाज में रहकर ही होता है। समाज में रहने वाले के जीवन के विविध पक्ष होते हैं जिनका अध्ययन विभिन्न सामाजिक विज्ञानों द्वारा किया जाता है। जिस प्रकार अर्थशास्त्र मानव के आर्थिक पक्ष का, समाजशास्त्र सामाजिक पक्ष का, नीतिशास्त्र नैतिक पक्ष का अध्ययन करता है, उसी प्रकार राजनीति विज्ञान मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है।

राजनीति विज्ञान का शाब्दिक अर्थ

राजनीति विज्ञान शब्द अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों 'Political' (राजनीतिक) तथा 'Science' (विज्ञान) से मिलकर बना है। 'Political' शब्द जो कि यूनानी भाषा के ‘Polis’'(पोलिस) शब्द से बना है जिसका अर्थ यूनानी भाषा में नगर अथवा राज्य होता है। दूसरे शब्द 'Science' (विज्ञान) का अर्थ है - सुव्यवस्थित क्रमबद्ध अध्ययन करना। इस प्रकार राजनीति विज्ञान वह विज्ञान है जो नगर - राज्य से सम्बन्धित, सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध ज्ञान की जानकारी देता है। कालान्तर में इन नगर-राज्यों का स्थान राष्ट्रीय राज्यों ने ले लिया। इस प्रकार शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन है। वर्तमान में राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य से सम्बन्धित सभी विषयों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान की परिभाषाएँ

परिभाषा का उद्देश्य वस्तु की निश्चित रूप से व्याख्या करना तथा असीमित को सीमित करना होता है। जब हम किसी वस्तु को निश्चित करते हैं तो उसे सीमित भी कर देते हैं। यद्यपि किसी विषय की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है किन्तु यह आवश्यक भी है। अतः सर्वप्रथम हम राजनीति विज्ञान की परिभाषाओं का अध्ययन करेंगे।
जो निम्नवत् हैं-

1. राज्य के अध्ययन के रूप में
राजनीति विज्ञान के विभिन्न विद्वान 'राज्य' को ही राजनीति विज्ञान के अध्ययन की विषय-वस्तु मानते हैं। इन विद्वानों का मत है कि मनुष्य अपना राजनीतिक जीवन राज्य में ही व्यतीत करता है। अतः इन विद्वानों द्वारा राजनीति विज्ञान की परिभाषाएँ राज्य के अध्ययन के रूप में निम्नानुसार प्रस्तुत की गयी हैं-
  • ब्लंटश्ली के मतानुसार, “राजनीति विज्ञान वह विज्ञान है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्या हैं, उसका आवश्यक स्वरूप क्या है, उसकी किन विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है तथा उसका विकास कैसे हुआ है।"
  • डॉ. गार्नर के अनुसार, "राजनीति विज्ञान विषय के अध्ययन का प्रारम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।"
  • डॉ. जकारिया के शब्दों में, "राजनीति विज्ञान व्यवस्थित रूप से उन आधारभूत सिद्धान्तों का निरूपण करता है जिनके अनुसार समष्टि रूप में राज्य को संगठित किया जाता है और प्रभुसत्ता का प्रयोग किया जाता है । "
  • जेम्स के शब्दों में, “राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान है।"
  • गैरीज ने राजनीति विज्ञान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “राजनीति विज्ञान राज्य के उद्भव, विकास, उद्देश्य तथा राज्य की समस्त समस्याओं का उल्लेख करता है।"
इसके अतिरिक्त, एक्टन, गुडनोव आदि विद्वानों ने भी 'राजनीति विज्ञान' को राज्य का ही अध्ययन बताया है।

2. सरकार के अध्ययन के रूप में
राजनीति विज्ञान के कुछ विचारक राज्य के स्थान पर सरकार के अध्ययन को प्रमुख मानते हैं। इन विद्वानों का मत है कि राज्य की इच्छाओं को साकार रूप सरकार ही प्रदान करती है और राज्य की क्रियात्मक अभिव्यक्ति के लिए सरकार का होना अति आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि सरकार के अध्ययन के रूप में राजनीति विज्ञान का आरम्भ अमेरिका में हुआ। इन विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को निम्नानुसार परिभाषित किया है-
  • सीले के मतानुसार, “राजनीति विज्ञान उसी प्रकार सरकार के तत्वों का अनुसन्धान करता है जिस प्रकार सम्पत्तिशास्त्र सम्पत्ति का, जीवशास्त्र जीव का, बीजगणित अंकों का, ज्यामितीय शास्त्र स्थान एवं लम्बाई-चौड़ाई का करता है। "
  • लीकॉक के मतानुसार, “राजनीति विज्ञान सरकार से सम्बन्धित विधा है।"

3. राज्य और सरकार दोनों के अध्ययन के रूप में
राजनीति विज्ञान के कुछ विद्वानों का मत है कि राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है क्योंकि सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है तथा सरकार राज्य द्वारा प्रदत्त प्रमुख शक्ति का ही प्रयोग करती है। राज्य के अभाव में सरकार तथा सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि राज्य के बिना सरकार का और सरकार के बिना राज्य का अध्ययन पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में राज्य और सरकार दोनों ही राजनीति विज्ञान के अध्ययन के विषय बन जाते हैं। इस श्रेणी के कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
  • डिमॉक के मतानुसार, “राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध राज्य तथा उसके साधन सरकार से है।
  • "फ्रांसीसी विचारक पॉल जैनेट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान समाज विज्ञानों का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार तथा सरकार के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।"
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, "राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है।"
  • आशीर्वादम् के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और शासन दोनों का ही विज्ञान है।"

आधुनिक राजनीति विज्ञान - परिभाषाएँ

राजनीति विज्ञान के आधुनिक विद्वानों ने 'आधुनिक राजनीति विज्ञान' को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
  • डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान समाज में मूल्यों का सत्तात्मक वितरण है।"
  • लासवेल और कैपलान के अनुसार, “एक आनुभविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन करता है।"
  • डॉ. हसजार तथा स्टीवेन्सन के मतानुसार, “राजनीति विज्ञान अध्ययन का वह क्षेत्र है जो प्रमुखतया शक्ति सम्बन्धों का अध्ययन करता है। इन शक्ति सम्बन्धों के कुछ प्रमुख रूप हैं - व्यक्तियों में परस्पर शक्ति सम्बन्ध, व्यक्ति और राज्य के मध्य शक्ति सम्बन्ध और राज्यों में परस्पर शक्ति सम्बन्ध।"
उपर्युक्त विद्वानों द्वारा 'शक्ति' शब्द को अत्यधिक व्यापक अर्थ में ग्रहण किया गया है।
  • केटलिन के मतानुसार, "राजनीति विज्ञान में शक्ति और नियन्त्रण का वही स्थान है जो अर्थशास्त्र में माँग, पूर्ति और प्रतिस्पर्द्धा मूल्य का होता है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं में केवल 'शक्ति' तत्व को ही प्रमुख माना गया है इसलिए यह परिभाषाएँ भी अपूर्ण हैं। राजनीति विज्ञान की सही परिभाषा पिनॉक तथा स्मिथ द्वारा परम्परागत तथा आधुनिक दृष्टिकोण में समन्वय स्थापित करते हुए निम्नानुसार दी गयी है-
"इस प्रकार राजनीति विज्ञान किसी भी समाज में उन सभी शक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनात्मक ढाँचों से सम्बन्धित होता है जिन्हें उस समाज में सुव्यवस्था की स्थापना और संधारण, अपने सदस्यों के अन्य सामूहिक कार्यों के सम्पादन तथा उनके मतभेदों का समाधान करने के लिए सर्वाधिक अन्तर्भावी और अन्तिम माना जाता है।"

राजनीति विज्ञान की प्रकृति

यद्यपि राजनीति विज्ञान को 'राजनीति विज्ञान' कहा गया है किन्तु इस विषय को अधिकांश विद्वान 'विज्ञान' मानने को तैयार नहीं है। इसी कारण 'राजनीति विज्ञान की प्रकृति का प्रश्न अत्यधिक विवादास्पद हो गया है। इसीलिए यह कहना अत्यधिक कठिन है कि 'राजनीति विज्ञान' विज्ञान है. अथवा कला या दोनों। इस विवादास्पद प्रश्न पर हम निम्नानुसार विचार करेंगे-

क्या राजनीति विज्ञान 'विज्ञान' है?

राजनीति विज्ञान वास्तव में विज्ञान है अथवा नहीं, इस सम्बन्ध में विद्वानों में परस्पर तीव्र मतभेद है। एक ओर तो बकाल, मेटलैण्ड, कॉम्टे, एमास, केटलिन, बियर्ड, बर्क तथा ब्रोगन जैसे विद्वान हैं जो इसे विज्ञान मानने के तनिक भी पक्ष में नहीं हैं तो दूसरी ओर, अरस्तू और बर्नार्ड शा जैसे प्रसिद्ध विद्वान उसे 'सर्वोच्च विज्ञान' और 'मानवीय सभ्यता का रखवाला' विज्ञान स्वीकार करते हैं। इनके अतिरिक्त, बोदाँ, हॉब्स, ब्राइस, माण्टेस्क्यू, ब्लंटश्ली, जेलिनेक, तथा लास्की आदि द्वारा भी इसे विज्ञान की संज्ञा प्रदान की गयी है। फाइनर तथा लास्की आदि द्वारा भी इसे विज्ञान की संज्ञा प्रदान की गयी है।

राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के विरुद्ध तर्क

बकल, मेटलैण्ड तथा अन्य विद्वान इसे विज्ञान मानने को तैयार नहीं है क्योंकि इसमें वे तत्व तथा विशेषताएँ पूर्ण रूप से विद्यमान नहीं हैं जो कि विज्ञान में होनी चाहिए। बैटले के शब्दों में, “राजनीति विज्ञान' (Political Science) मर गया है। अब तो इसमें मात्र संस्थाओं का औपचारिक अध्ययन होता है।" मेटलैण्ड ने भी अपनी व्यंगात्मक भाषा में कहा है कि "जब मैं राजनीति विज्ञान शीर्षक के अन्तर्गत परीक्षा प्रश्नों को देखता हूँ तो मुझे प्रश्नों के प्रति नहीं वरन् शीर्षक के प्रति खेद होता है।"

विज्ञान क्या है?
बकल, कॉम्टे तथा अन्य विद्वानों के अनुसार - "सामान्यतया विज्ञान, ज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत कार्य एवं कारण का सदैव निश्चित सम्बन्ध पाया जाता हो और जिसके निष्कर्ष निश्चित एवं शाश्वत हों।" संक्षेप में, किसी विषय के पूर्ण ज्ञान को विज्ञान माना जाता है। इसमें तथ्यों के आधार पर कुछ सामान्य तथा शाश्वत सिद्धान्त निर्धारित किये जाते हैं जो सार्वभौमिक होते हैं। गार्नर के शब्दों में, "विज्ञान किसी भी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान की राशि को कहते हैं जो विधिवत् पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन द्वारा प्राप्त किया गया हो और जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध एवं वर्गीकृत किये हुए हों।" विज्ञान के इस अर्थ एवं परिभाषा के आधार पर हम राजनीतिशास्त्र को विज्ञान नहीं मान सकते हैं। कॉम्टे की मान्यतानुसार, “राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ उसकी अध्ययन-विधियों, सिद्धान्तों एवं निष्कर्षों के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं। इसमें विकास की निरन्तरता का अभाव है।"

इन विद्वानों ने अपने कथन के पक्ष एवं समर्थन में निम्न तर्क प्रस्तुत किये हैं-

1. क्रमबद्धता एवं सुव्यवस्थित ज्ञान का अभाव
विज्ञान की भाँति राजनीति विज्ञान को न तो पूर्णता प्राप्त है और न इसकी कोई एक सुनिश्चित एवं सर्वमान्य परिभाषा ही दी जा सकती है। इसमें क्रमबद्धता एवं सुव्यवस्थित ज्ञान का भी अभाव पाया जाता है। इसके विभिन्न विचारों, पद्धतियों तथा सिद्धान्तों में अनिश्चितता तथा बिखराव है तथा उनमें एकरूपता एवं क्रमबद्धता नहीं आ पाती है। इसीलिए विद्वान इसे वास्तविक अर्थ में विज्ञान मानने को कदापि तैयार नहीं हैं।

2. सर्वमान्य नियमों तथा तथ्यों का अभाव
भौतिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति इसमें सर्वमान्य नियमों, तथ्यों तथा सिद्धान्तों का निर्धारण नहीं हो पाता है। विज्ञान में कुछ निश्चित नियम तथा सिद्धान्त होते हैं जो सर्वमान्य एवं सार्वभौम होते हैं। उदाहरणार्थ, ज्यामिति का यह नियम अटल एवं सर्वमान्य है कि “एक त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है।” किन्तु राजनीतिशास्त्र में ऐसा नहीं है। इसी तरह गति विज्ञान के नियमानुसार, “प्रत्येक क्रिया की उतनी ही. विपरीत प्रतिक्रिया होती है" का नियम भी अटल एवं शाश्वत है। इसी तरह इसमें गणित के 2 और 2 चार अथवा भौतिक विज्ञान के 'गुरुत्वाकर्षण नियम' (Law of Gravitation) की भाँति किन्हीं सर्वमान्य एवं शाश्वत नियमों का सर्वथा अभाव पाया जाता है।" यदि एक ओर आदर्शवादी राज्य की सर्वोच्च सत्ता को मान्यता देते हैं तो दूसरी ओर, साम्यवादी तथा अराजकतावादी इसको अमान्य करते हैं ।
यदि बेंजामिन फ्रैंकलिन, लास्की और एबेसीज जैसे विद्वान एक सदनीय व्यवस्थापिका के पक्षधर हैं तो लैकी, सिजविक तथा ब्लंटश्ली आदि इसके घोर विरोधी हैं। यदि एक पक्ष के लिए प्रजातन्त्र सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति है तो दूसरे पक्ष के लिए वह बहुत बुरी तथा निकृष्ट शासन पद्धति है। अन्य तथ्यों तथा सिद्धान्तों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार के मतभेद एवं विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं।

3. निश्चित पारिभाषिक शब्दावली का अभाव
राजनीतिशास्त्र में हम एक निश्चित पारिभाषिक शब्दावली का अभाव पाते हैं। इसे राजनीति, राजनीतिक दर्शन तथा राजनीति विज्ञान आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। इसके अनेक ऐसे शब्द हैं जिनके वास्तविक अर्थ के सम्बन्ध में विद्वानों में तीव्र मतभेद पाये जाते हैं। विज्ञान में H2O का अर्थ प्रत्येक स्थान पर एक ही होगा, चाहे वह अमेरिका हो या भारत किन्तु राजनीतिशास्त्र में प्रजातन्त्र, संघवाद, स्वतन्त्रता एवं अधिकार आदि के भिन्न-भिन्न देशों में विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न अर्थ लगाये जाते हैं। इस तरह जिसका अपना कोई स्पष्ट व निश्चित स्वरूप ही न हो, उसे विज्ञान की संज्ञा कैसे दी जा सकती है।

4. प्रयोग व पर्यवेक्षण सम्भव नहीं
इसमें भौतिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रयोग एवं पर्यवेक्षण की सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। इसमें हम भौतिक, रसायन, जीव तथा मौसम विज्ञानों आदि की भाँति प्रयोगशालाओं में जाकर तथ्यों तथा पदार्थों के सम्बन्ध में कोई निश्चित एवं सन्तोषजनक समाधान नहीं निकाल सकते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध मानव एवं उससे सम्बन्धित विचारधाराओं से होता है जिनका प्रयोग प्रयोगशालाओं या वेधशालाओं में सम्भव नहीं है। ब्राइस के शब्दों में, “भौतिक विज्ञान में एक निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बार-बार प्रयोग किया जा सकता है किन्तु राजनीति में एक प्रयोग बार-बार नहीं दोहराया जा सकता है।"

5. भविष्यवाणी सम्भव नहीं
विज्ञान से सम्बन्धित विषयों के सम्बन्ध में हम निश्चित भविष्य वाणियाँ कर सकते हैं किन्तु राजनीति विज्ञान में ऐसा सम्भव नहीं है। इसमें कार्य-कारण का सम्बन्ध निश्चित न होने के कारण ऐसा करना बहुत कठिन होता है। मौसम विज्ञान द्वारा की गयी भविष्यवाणियाँ अक्सर सही सिद्ध होती हैं किन्तु राजनीति विज्ञान के साथ ऐसा नहीं है। इसमें यह निश्चित रूप से भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है कि जनतन्त्रीय प्रणाली तथा संघात्मक शासन व्यवस्था किसी देश विशेष में सफल ही होगी या असफल हो जायेगी। इसी तरह चुनावों के सम्बन्ध में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है कि किस दल को बहुमत प्राप्त होगा या किस दल को कितनी सीटें प्राप्त होंगी। सन् 1970 के ब्रिटिश आम चुनाव तथा 1971, 77, 80, 84 तथा इसके बाद के भारतीय लोकसभा के चुनाव परिणाम भी नितान्त अप्रत्याशित ही रहे थे। बर्क ने तो यहाँ तक कह दिया है कि “राजनीति में भविष्यवाणी करना मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है।" लॉस्की ने भी कहा है कि "हम अनुभव के आधार पर भविष्यवाणी कर सकते हैं। हमारी भविष्यवाणी तथ्यों के अभाव एवं अनिश्चितता के कारण सीमित है।"
इस तरह इसमें अन्य भौतिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति सफलता एवं निश्चियपूर्वक भविष्वाणयाँ करना सम्भव नहीं है।

6. कार्य और कारण में निश्चित सम्बन्ध का अभाव
राजनीति विज्ञान में कार्य और कारण में निश्चित सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है, जबकि रसायन एवं भौतिक विज्ञानों में कार्य और कारण के मध्य निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है क्योंकि राजनीतिक क्षेत्र में घटित होने वाली घटनाएँ विविध, जटिल एवं पेचीदे कारणों का परिणाम होती हैं। सन् 1917 की रूसी क्रान्ति तथा सन् 1857 की भारतीय क्रान्ति क्रमशः साम्यवादी और राष्ट्रीय विचारधारा के फलस्वरूप हुई थीं या उस समय के विशिष्ट राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के कारण या अन्य कारणों से, इस सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
इसी तरह इसमें भौतिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति कुछ सामान्य निश्चित निष्कर्ष भी नहीं निकाले जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अध्ययन पद्धतियों की विभिन्नता तथा आत्मपरक (Subjective) अध्ययन विषय आदि के आधार पर भी विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान स्वीकार करने में संकोच करते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों के कारण हम राजनीति विज्ञान को अन्य प्राकृतिक तथा भौतिक विज्ञानों की भाँति विशुद्ध विज्ञान (Pure Science) नहीं मान सकते हैं। इसी आधार पर बकल का कथन है कि "ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो बहुत दूर रहा, यह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला है।" इसी तरह विलोबी ने भी कहा है कि "राजनीति का विज्ञान बनना न तो सम्भव है और न ही वांछनीय।"
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिकता का सर्वथा अभाव पाया जाता है।

विषय की वैज्ञानिकता के पक्ष में तर्क
राजनीति विज्ञान का एक दूसरा पहलू भी है जिसके आधार पर इसे विज्ञान माना जा सकता है। उपर्युक्त कथन में सत्यांश अवश्य है किन्तु उसमें अतिशियोक्ति भी अत्यधिक है। बकल, बिपर्ड, कॉम्टे तथा बर्क आदि विद्वानों का दृष्टिकोण विज्ञान की संकुचित एवं त्रुटिपूर्ण धारणा पर आधारित प्रतीत होता है। पदार्थ विज्ञानों की परिभाषा तथा मापदण्डों की राजनीति विज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं तथा दृष्टिकोण पर व्यापक दृष्टि से विचार करना होगा। प्रसिद्ध विद्वान गार्नर के शब्दों में विज्ञान की सही परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है कि "एक विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान राशि को कहते हैं जो विधिवत् पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गयी हो और जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध तथा वर्गीकृत किये गये हों।" थामसन तथा हार्नशॉ आदि विद्वानों ने भी विज्ञान की परिभाषा इसी प्रकार से दी है।
उपर्युक्त परिभाषाओं तथा तथ्यों के सन्दर्भ में जब इस विषय की विवेचना की जाती है तो यह सर्वथा स्पष्ट एवं निश्चित हो जाता है कि "राजनीति विज्ञान वास्तव में एक विज्ञान है।"
राजनीति विज्ञान को कुछ विद्वान 'विज्ञान' मानने के पक्ष में अनेक सबल तर्क प्रस्तुत करते हैं। राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

1. सुस्पष्ट, सुनिश्चित एवं क्रमबद्ध अध्ययन
राजनीति विज्ञान भी अन्य विज्ञानों की भाँति वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरता है क्योंकि इसमें भी विज्ञान की ही भाँति एक सुस्पष्ट एवं क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। इसमें सुव्यवस्थित ज्ञान एवं क्रमबद्धता पायी जाती है। गार्नर के शब्दों में, "विज्ञान एक क्रमबद्ध अध्ययन है।" इस दृष्टि से राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इसमें राज्य सरकार एवं विविध राजनीतिक सिद्धान्तों का सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

2. पर्यवेक्षण तथा प्रयोग सम्भव
विज्ञान की भाँति राजनीतिशास्त्र में भी बहुत कुछ पर्यवेक्षण एवं प्रयोग सम्भव हैं। राजनीति विज्ञान अपने आप में एक अनूठी तथा विशाल प्रयोगशाला (Laboratory) है जहाँ विभिन्न सिद्धान्तों तथा शासन पद्धतियों का सफल परीक्षण एवं प्रयोग किया जा सकता है। गार्नर ने इस तथ्य को स्वयं स्वीकार किया है। वास्तव में, राजनीति विज्ञान में तो पर्यवेक्षण एवं प्रयोगों की व्यवस्था रहती है। जैसे लोकतन्त्रात्मक तथा अन्य शासन पद्धतियों का विश्लेषण करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लोकतन्त्रात्मक शासन पद्धति अन्य पद्धतियों की अपेक्षा कहीं अधिक लोकप्रिय एवं लोकहित के प्रति सजग रहती है। संघवाद, बहुलवाद, समाजवाद, साम्यवाद, लोकप्रिय सम्प्रभुता तथा लोक-कल्याणकारी राज्य की धारणा आदि का राजनीति में समावेश एक प्रयोग के तौर पर ही हुआ है तथा उन्हें अत्यधिक सफलता भी प्राप्त हुई है।
यद्यपि इसमें पदार्थ विज्ञानों की भाँति प्रयोगशालाओं में बैठकर पूर्ण निश्चितता एवं सरलता से प्रयोग तो नहीं किये जा सकते, फिर भी राजनीति विज्ञान में प्रयोग होते रहे हैं और होते जा रहे हैं। गार्नर के शब्दों में, “प्रत्येक नवीन कानून का बनना, प्रत्येक नई संस्था का गठन तथा प्रत्येक नई बात का प्रारम्भ एक प्रयोग ही होता है।" भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अन्तर्गत अपनाया गया अहिंसात्मक सत्याग्रह, भारतीय शासन तथा राजनीति में पंचायती राज, सामुदायिक विकास योजना तथा प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की योजना आदि इसी प्रकार के राजनीतिक प्रयोगों के ही उदाहरण हैं।

3. सर्वमान्य नियमों तथा सिद्धान्तों की क्षमता
राजनीतिशास्त्र में भी प्राकृतिक तथा भौतिक विज्ञानों की भाँति कुछ सामान्य नियम एवं शाश्वत सिद्धान्त हैं। राज्य, विधि, न्याय, शिक्षा तथा क्रान्तियों आदि के सम्बन्ध में कुछ ऐसे सार्वजनिक एवं शाश्वत नियम एवं निश्चित सिद्धान्त हैं जो प्रत्येक परिस्थिति तथा देश में लागू होते हैं। इनके आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं। प्लेटो का न्याय एवं शिक्षा सिद्धान्त, अरस्तू का राज्य वर्गीकरण तथा क्रान्ति का सिद्धान्त, रोमन - विधि सिद्धान्त, बोदाँ का सम्प्रभुता सिद्धान्त, रूसो तथा लॉक की स्वतन्त्रता सम्बन्धी धारणा तथा गाँधी जी के सत्याग्रह सम्बन्धी विचार प्रायः सर्वमान्य तथा शाश्वत सिद्धान्तों के रूप में हैं।

4. कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है
पदार्थ विज्ञानों की भाँति राजनीति विज्ञान में भी कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं। हमारा वर्षों का अध्ययन एवं अनुभव यह दर्शाता है कि जब भी कोई शासक अत्याचारी, अनुत्तरदायी एवं क्रूर होता है एवं शासन व्यवस्था जनहितकारी नहीं होती तो वहाँ फ्रांस, रूस, भारत तथा अन्य एशियाई तथा अफ्रीकी देशों की भाँति क्रान्तियाँ तथा विद्रोही अवश्य होते हैं। बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान की क्रान्तियाँ इसका एक प्रमुख उदाहरण हैं। क्रान्ति के सम्बन्ध में कार्य-कारण का सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। इस तरह इसमें यद्यपि पदार्थ विज्ञानों की भाँति प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता, फिर भी विशेष घटनाओं के अध्ययन से कुछ सामान्य परिणाम एवं निष्कर्ष तो निकाले ही जा सकते हैं। ब्राइस द्वारा इस तथ्य को स्वीकार किया गया है।

5. भविष्यवाणी की क्षमता
जहाँ तक भविष्यवाणियों का सम्बन्ध है, इसमें प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति तो भविष्यवाणी नहीं की जा सकती किन्तु इसमें भी भविष्यवाणियाँ हो सकती हैं और बहुधा सत्य भी सिद्ध होती हैं। उदाहरणार्थ, वर्तमान में देश में होने वाले चुनावों के सम्बन्ध में विभिन्न सर्वेक्षणों द्वारा भविष्यवाणियाँ की जाती रही हैं और बहुत-सी भविष्यवाणियाँ सत्यता की कसौटी पर खरी उतरी हैं।
  • डॉ. फाइनर के मतानुसार, "इसमें हम निश्चिततापूर्वक भविष्यवाणियाँ नहीं कर सकते किन्तु सम्भावनाएँ तो व्यक्त कर ही सकते हैं।" फिर, यदि इसे वैज्ञानिकता की कसौटी मान लिया जाये तो फिर मौसम विज्ञान जैसे कई विषयों को भी विज्ञान की संज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती है क्योंकि उनके द्वारा की गयी भविष्यवाणियाँ सदैव सत्य निकलती नहीं पायी गयी हैं।
मतैक्यता का अभाव एवं पारिभाषिक शब्दावली का अभाव होना भी कुछ अधिक नहीं माना जा सकता है।
वस्तुतः राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिकता के सम्बन्ध में प्रथम पक्ष द्वारा उठायी गयी आपत्तियाँ तथा शंकाएँ बहुत कुछ निराधार एवं बेबुनियाद प्रतीत होती हैं। भौतिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों से भिन्न होने के बाद भी राजनीति विज्ञान एक विज्ञान है। अधिकांश राजनीतिक विचारक इसे विज्ञान मानने के पक्ष में हैं।

निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप में हम यही कह सकते हैं कि पदार्थ विज्ञानों की भाँति पूर्णतया निश्चित न होने के बाद भी राजनीति विज्ञान को अन्य सामाजिक विज्ञानों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस आधार पर हाब्स, ब्राइस, बोदाँ तथा माण्टेस्क्यू आदि आधुनिक लेखक इसे विज्ञान ही मानते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान भी अन्य सामाजिक विज्ञानों (Social Sciences) की भाँति एक विज्ञान है।

राजनीति विज्ञान एक कला है

चूँकि राजनीति विज्ञान को कुछ कारणों से एक पूर्ण तथा विशुद्ध विज्ञान मानना तर्कसंगत एवं उचित प्रतीत नहीं होता अतः अनेक विद्वानों द्वारा इसे कला के अन्तर्गत रखा गया है। ब्लंटश्ली के शब्दों में, " राजनीति से विज्ञान की अपेक्षा कला का ही कहीं अधिक बोध होता है तथा उसका सम्बन्ध राज्य के व्यावहारिक कार्यों एवं राज्य के संचालन से है।" गैटिल ने भी इसे कला ही माना है किन्तु बकल जैसे विद्वान भी हैं जो इसे कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला (One of the most backward arts) मानते हैं।

कला का अर्थ तथा उद्देश्य
कला का आशय एवं उद्देश्य जीवन की सुन्दरतम अनुभूति से है। वह मानव की श्रेष्ठ कल्पनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति है। कला का उद्देश्य जीवन को मधुर एवं समुन्नत बनाना है। अत: यह 'सत्यम्' शिवम् एवं सुन्दरम्' की अभिव्यक्ति है। इस आधार पर वह विज्ञान से भिन्न प्रतीत होती है जिसका उद्देश्य ठोस तथ्यों का प्रतिपादन करना है।

निम्न आधारों पर हम इसकी विवेचना कर सकते हैं-
  • एक कलाकार की भाँति राजनीति विज्ञानी भी अपने विचारों की अभिव्यक्ति बहुत अच्छे ढंग से करने का प्रयास करते हैं। वे विचारों तथा तथ्यों को आकर्षक रंगों के माध्यम से उसे लोकप्रिय, भव्य तथा लोकोपयोगी बनाने का भी प्रयत्न करते हैं। संगीत एवं कला की भाँति ही राजनीति विज्ञान का उद्देश्य भी राज्य एवं नागरिकों के लिए आदर्श सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर मानव जीवन को समुन्नत, सुखी, आदर्श एवं मधुर बनाना होता है।
  • राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति एवं कार्य संचालन के लिए जिस प्रकार के नियम, साधन या उपाय अपनाता है, वह कला के अन्तर्गत ही आते हैं। व्यावहारिक राजनीति का सम्बन्ध कला से ही है।
  • स्वयं शासन करना भी एक श्रेष्ठ कला ही है। इसीलिए प्लेटो शासन का उत्तरदायित्व योग्य तथा प्रशिक्षित दार्शनिकों को ही सौंपने के पक्ष में था । प्रायः प्रत्येक शासन में कुछ अच्छे तथा आदर्श शासक की आवश्यकता एवं महत्व पर बल दिया जाता है। शासक के पास सूझ-बूझ एवं चतुराई होनी चाहिए, ताकि उसे अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त हो सके ।
इस प्रकार शासन करना स्वयं अपने आप में एक श्रेष्ठ कला है। अतः बकल का यह कथन निराधार प्रतीत होता है कि "राजनीति कलाओं में भी सबसे पिछड़ी हुई कला है।" वस्तुतः राजनीति एक श्रेष्ठ तथा विकासशील कला है।

विज्ञान तथा कला दोनों
इस प्रकार 'राजनीति' 'विज्ञान तथा कला' दोनों ही है। अपने व्यापक अर्थ में तथा सामाजिक विज्ञान के एक अंग के रूप में हम इसे विज्ञान की संज्ञा प्रदान कर सकते हैं तथा आदर्श जीवन की प्राप्ति में सहयोग प्रदान करने के कारण इसे कला भी मान सकते हैं। अत: 'राजनीति विज्ञान' विज्ञान तथा कला दोनों ही है। तथापि अधिकांश आधुनिक लेखक इसे विज्ञान की अपेक्षा कला की श्रेणी में रखना ही अधिक उपयुक्त समझते हैं।

आधुनिक राजनीति विज्ञान की प्रकृति

आधुनिक राजनीति विज्ञान की प्रकृति परम्परागत राजनीति विज्ञान से अलग ही नहीं वरन् विपरीत भी है। इसकी प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
आधुनिक राजनीति विज्ञान तुलनात्मक और विश्लेषणात्मक है। यह तथ्यों पर अधिक बल देता है और वैज्ञानिक व आनुभविक दृष्टिकोणों का अनुसरण करता है। आधुनिक राजनीति विज्ञान की राजनीति के विषय में एक निश्चित सोच है और उसकी अपनी विशेष शब्दावली व अध्ययन पद्धति है। यह राजनीति की प्रतिक्रियाओं से अधिक सम्बन्धित हैं, उसकी संस्थाओं से इसका सम्बन्ध बहुत कम है। आधुनिक राजनीति विज्ञान व्यक्ति को आधार मानते हुए उसके अन्तर्शास्त्रीय सम्बन्धों को अपने अध्ययन का विषय मानता है और आदर्शमूलक न होकर आनुभविक तथा कुछ सीमा तक प्रयोगात्मक है।
यह व्यक्ति तथा उसके व्यवहार के आधार पर राजनीति को समझने का प्रयास करता है और व्यक्ति के व्यवहार को तथ्यों व आँकड़ों में एकत्रित करके उनके विश्लेषण का प्रयास करता है। आधुनिक राजनीति विज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का विश्लेषण करता है और विश्लेषण से प्राप्त परिणामों को राजनीतिक परिकल्पनाओं के साथ सम्बद्ध करता है। यह वैज्ञानिक पद्धति का गम्भीरता से अनुसरण करता है और अपने अध्ययन में तथ्यों व मूल्यों को अत्यधिक महत्व देता है। यदि यह कहा जाये कि आधुनिक राजनीति विज्ञान शोध व सिद्धान्त का सम्मिश्रण है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। राजनीति विज्ञान के आधुनिक विद्वानों का मानना है कि यह राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण करके उनकी व्याख्या प्रस्तुत करता है और उससे सम्बन्धित भविष्यवाणी करता है।
आधुनिक राजनीति विज्ञान शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन करता है और राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन पर अधिक बल देता है। यह राजनीति का अन्य सामाजिक शास्त्रों से सम्बन्धों का. विवेचन व अध्ययन करता है।

राजनीति विज्ञान का परम्परागत क्षेत्र

सामान्यतया किसी विषय के क्षेत्र से आशय उस विषय की विषय-सामग्री (Subject-matter) से होता है अर्थात् उसमें किन-किन बातों का अध्ययन किया जाता है। परिभाषा की ही भाँति राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के सम्बन्ध में भी विद्वानों में परस्पर मतैक्य का अभाव पाया जाता है। इसको लेकर राजनीति विज्ञानियों में तीव्र मतभेद पाये जाते हैं। यह मतभेद निम्न दो बातों को लेकर है-
  • (1) व्यापक तथा संकुचित क्षेत्र तथा (2) विषय-वस्तु अथवा अध्ययन सामग्री।
प्लेटो तथा अरस्तू जैसे प्रसिद्ध राजनीति के विचारक इसके क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक मानते थे। वे राज्य को मात्र एक राजनीतिक संस्था न मानकर नैतिक संस्था (Ethical Institution) भी स्वीकार करते थे। इसीलिए उनकी दृष्टि में राजनीति का क्षेत्र काफी विस्तृत एवं व्यापक था। उनके मतानुसार इसके अन्तर्गत समाज, राज्य, धर्म तथा नैतिकता आदि का अध्ययन सम्मिलित था।

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का अध्ययन हम निम्न आधारों पर कर सकते हैं-

1. व्यक्ति के सन्दर्भ में
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के अन्तर्गत समस्त मानव जीवन का अध्ययन नहीं होता वरन् राज्य संस्था के सन्दर्भ में ही मनुष्य का अध्ययन किया जाता है। राज्य का गठन व्यक्तियों द्वारा ही किया जाता है और उन्हीं के लिए वह जीवित रहता है। राज्य के नागरिक समाज द्वारा स्वीकृत और राज्य द्वारा लागू किये जाने वाले नियमों तथा अधिकारों का ही उपभोग करते हैं तथा नागरिक होने के नाते उनके राज्य के प्रति कुछ कर्तव्य भी होते हैं। वस्तुतः व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों की समस्या अत्यधिक जटिल रही है और बहुत कुछ आज भी है। अतः राजनीति विज्ञान में व्यक्ति के अधिकार तथा राज्य के प्रति उसके कर्तव्यों तथा व्यक्ति एवं राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों का संचालन करने वाले आधारभूत तथ्यों एवं सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है। केटलिन के मतानुसार, “राजनीति नियन्त्रक एवं नियन्त्रित के व्यापक सम्बन्धों का अध्ययन है।"

2. राज्य के सन्दर्भ में
राज्य राजनीति विज्ञान का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वोच्च एवं सर्वांगीण विकास राज्य के माध्यम से ही होता है। समाज के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राज्य सर्वोच्च इकाई (Supreme Body) है। प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू ने राज्य के सन्दर्भ में कहा है कि "राज्य की उत्पत्ति जीवन के लिए हुई है और सद्जीवन के लिए उसका अस्तित्व बना हुआ है।" मानव जीवन की आवश्यकताओं तथा वातावरण के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थितियों पर राज्य के भिन्न-भिन्न रूप रहे हैं और राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत इन सभी रूपों का अध्ययन किया जाता है।
गैटिल ने इस सम्बन्ध में कहा है कि "राजनीति विज्ञान में राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भावी स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।" अर्थात् गैटिल की मान्यता के अनुसार, ""राज्य कैसा रहा है' की ऐतिहासिक खोज, 'राज्य कैसा है' का विश्लेषणात्मक अध्ययन तथा 'राज्य कैसा होना चाहिए' की राजनीतिक व नैतिक परिकल्पना (Politico-ethical Discussion) है।"

3. सरकार के सन्दर्भ में
राज्य एवं सरकार एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना हम दूसरे का अध्ययन कर ही नहीं सकते। राज्य अपनी सम्प्रभु शक्ति का प्रयोग सरकार के माध्यम से ही करता है। अतः सरकार के बिना राज्य के किसी भी अध्ययन को पूर्ण नहीं माना जा सकता है। एक समय राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं किया जाता था किन्तु क्रमशः इसमें परिवर्तन आता गया और जनता के प्रतिनिधियों का शासन स्थापित हो जाने के बाद यह अन्तर प्रतीत होने लगा। परिवर्तित परिस्थितियों में सरकार के व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तीन स्पष्ट अंग हो गये हैं और वह इन पृथक्-पृथक् अंगों के माध्यम से ही शासन संचालन का कार्य करती है। वर्तमान में तो इस बात पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि सरकार को जनता के प्रति अधिक-से-अधिक उत्तरदायी कैसे बनाया जा सकता है। इसीलिए राजनीति विज्ञान में सरकार के विविध अंगों, स्वरूपों, उसके प्रकार तथा संगठन आदि का अध्ययन किया जाता है।
इस प्रकार राजनीति विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक एवं विस्तृत है क्योंकि इसमें मनुष्य की राज्य से सम्बन्धित अतीत, वर्तमान तथा भावी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिसमें सरकार का भी अध्ययन सम्मिलित होता है।
इसके अतिरिक्त, राजनीति विज्ञान में हम राष्ट्रीय, स्थानीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं, शासन - प्रबन्ध (लोक प्रशासन), अन्य समाज विज्ञानों का प्रासंगिक अध्ययन, राजनीतिक दलों तथा अन्य दबाव गुटों, राजनीतिक विचारों का इतिहास और आधुनिक राजनीतिक विचारधाराएँ तथा अन्तर्राष्ट्रीय विधि, सम्बन्धों तथा संगठनों आदि का अध्ययन करते हैं।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्वीकार किया जा सकता है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ राजनीति विज्ञान का क्षेत्र भी दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक व्यापक होता जा रहा है और यह कहा जा सकता है कि "राजनीति विज्ञान विषय का क्षेत्र उतना ही व्यापक है जितना कि समय और प्रदेश का।"

आधुनिक राजनीति विज्ञान का क्षेत्र

आधुनिक राजनीति विज्ञान परम्परावादी राजनीति विज्ञान के विषय क्षेत्र में आने वाली सभी अवधारणाओं/ तत्वों को अपने विषय क्षेत्र का अंग मानता है किन्तु उसके साथ-साथ वह अपने विषय-क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नांकित तत्वों के अध्ययन पर अधिक बल देता है-

1. राजनीति विज्ञान राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार इसे राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन कहा जा सकता है। डेविड ईस्टन तथा आमण्ड पावेल जैसे आधुनिक विद्वान राजनीति विज्ञान को कुछेक औपचारिक संरचनाओं-संस्थाओं, जैसे- राज्य, सरकार, राजनीतिक दल, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि से सम्बन्धित विज्ञान होने के साथ-साथ इन औपचारिक संरचनाओं-संस्थाओं को प्रभावित करने वाले तत्वों से सम्बन्धित मानते हैं और इसी कारण वे राजनीति विज्ञान में इन तत्वों और तथ्यों का भी अध्ययन करना आवश्यश्क समझते हैं। इन विद्वानों की मान्यता है कि राजनीतिक रूप से औपचारिक संस्थाओं तथा संरचनाओं का ज्ञान तब तक अधूरा रहता है जब तक इन्हें प्रभावित व प्रेरित करने वाले तत्वों का अध्ययन नहीं किया जाता है। वास्तव में, यह तत्व तथ्य ही औपचारिक संरचनाओं-संस्थाओं को सही अर्थ देते हैं तथा उनकी सही उपयोगिता व महत्व बताते हैं।

2. अन्य सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन
राजनीति विज्ञान अन्य सामाजिक विज्ञानों से अलग हटकर अपनी समस्याओं का अध्ययन नहीं कर सकता। अन्य सामाजिक विज्ञान भी मानव से सम्बन्धित होने के कारण मानव के किसी विशेष पहलू का अध्ययन करते हैं। मानव जीवन के राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने में सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, मनोवैज्ञानिक आदि तत्व भी महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। राजनीति विज्ञान का अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन के बिना अधूरा माना जाता है। यही कारण है कि अनेक विद्वानों ने राजनीतिक संगठन के भौगोलिक आधारों का विश्लेषण किया है। फ्रांसीसी विचारक मॉण्टेस्क्यू का नाम इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है। कार्ल मार्क्स जैसे विद्वानों ने राजनीति विज्ञान के लिए आर्थिक आधार को महत्व दिया है। ग्राहम वालास आदि ने राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए मनोविज्ञान की ओर संकेत किया है। राजनीति विज्ञान जो एक समय अपने अध्ययन के लिए केवल राजनीतिक तत्वों का ही ध्यान रखता था, आज अपने अध्ययन में आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक आधारों की भी खोज करता है। '

3. राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन
राजनीति विज्ञान के अध्ययन - क्षेत्र में आज न केवल राज्य व सरकार का अध्ययन ही सम्मिलित है वरन् नागरिकों की राजनीतिक गतिविधियाँ भी राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए सहायक सिद्ध हुई हैं। किसी भी राज्य में नागरिकों के मतदान व्यवहार की प्रकृति (Voting Pattern), लोकमत के साधन (Agencies of Public Opinion) आदि भी राजनीति विज्ञान में उपयोगी माने गये हैं। राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में नागरिकों की राजनीतिक गतिविधियाँ अनेक राजनीतिक विषयों की खोज में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

4. सत्ता तथा राज्य शक्ति का अध्ययन
राजनीति विज्ञान के विषय क्षेत्र में सत्ता तथा राज्य शक्ति का अध्ययन एक विशिष्ट स्थान रखता है। सत्ता क्या है? राज्य शक्ति किस प्रकार प्राप्त की जाती है तथा राज्य व सरकार अपने कानूनों का पालन करवाने के लिए किन-किन साधनों पर निर्भर होते हैं- ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर राजनीति विज्ञान से ही प्राप्त किया जा सकता है। सत्ता तथा राज्य शक्ति से सम्बन्धित तथ्य ही राजनीति विज्ञान का वास्तविक आधार हैं।
राजनीति विज्ञान के विषय क्षेत्र में क्या-क्या सम्मिलित किया जाना चाहिए? इस विषय पर आधुनिक विचारकों में मत भिन्नता है परन्तु कुछ प्रश्नों पर उनमें सहमति भी है। विषय-क्षेत्र के सन्दर्भ में ऐसे विचारकों का विवेचन निम्नानुसार है-
  1. राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन - आधुनिक राजनीति विज्ञान से सम्बद्ध विद्वान राजनीति विज्ञान को 'शक्ति का अध्ययन' मानते हैं तथा यह विचार करते हैं कि राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय 'शक्ति' हैं। सन् 1962 में प्रकाशित कैटलिन की संशोधित पुस्तक 'सिस्टेमेटिक पोलिटिक्स' (Systematic Politics) में उसने कहा है कि "राजनीति विज्ञान प्रभुत्व तथा नियन्त्रण के लिए किया जाने वाला संघर्ष है तथा राजनीतिक कार्यों की कुंजी है। राजनीति विज्ञान के विषय क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए कैटलिन कहता है कि “नियन्त्रण समाज में जो कुछ करता है, नियन्त्रण भावना के कारण जो कार्य किये जाते हैं तथा नियन्त्रण की भावना पर आधारित सम्बन्धों की इच्छाओं के कारण, जिससे ढाँचा व इच्छाओं का निर्माण होता है, राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध उन सबसे है।" लॉसवेल ने भी 'शक्ति' को राजनीति विज्ञान का विषय माना है। उसका कहना है कि राजनीति वह है जो यह बताये कि कौन, क्या, कब और कैसे शक्ति प्राप्त करता है। उसकी रचना का वास्तव में नाम भी यही है- 'पोलिटिक्स : हू गैट्स, ह्वाट, वैन एण्ड हाउ' (Politics: Who Gets, What, When and How)। उसके अपने शब्दों में, “राजनीतिक क्रिया-कलाप का प्रारम्भ उस परिस्थिति से होता है जिसमें कर्ता विभिन्न मूल्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है तथा शक्ति जिसकी आवश्यक शर्त होती है। "
  2. राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों के अधिकारिक निर्धारण से है - राजनीति विज्ञान के विषय में डेविड ईस्टन ने अपनी रचना 'द पोलिटिकल सिस्टम' (The Political System) में कहा है कि राजनीति विज्ञान सामाजिक मूल्यों का निर्धारण करता है तथा उन मूल्यों का आधिकारिक वितरण करता है। उसके मतानुसार, राजनीति विज्ञान में नीति, अधिसत्ता तथा समाज प्रमुख होते हैं। नीति से ईस्टन का आशय उन निर्णयों एवं मानव क्रिया-कलापों से है जिनके द्वारा सामाजिक मूल्यों का निर्धारण होता है; अधिसत्ता वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नीतियों, निर्णयों तथा क्रिया-कलापों का निर्धारण होता है; समाज वह व्यवस्था है जहाँ व्यक्ति के क्रिया-कलापों, गतिविधियों तथा नीतियों का निर्धारण होता है। ईस्टन के विचारों को निम्न प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है- "समाज के सदस्य अपनी उन क्रियाओं जिनमें उनकी माँगें निहित होती हैं, राज्य सरकार पर उन्हें मनवाने के लिए दबाव डालते रहते हैं; राज्य सरकार उन कार्यों को कार्य रूप देकर नीतियों में परिवर्तित करती है तथा वह नीतियाँ निर्णय सामाजिक मूल्यों के रूप में निर्धारित किये जाने पर समाज के सदस्यों में अधिकारिक ढंग से वितरित होते हैं। "
  3. राजनीति विज्ञान समस्याओं व संघर्ष का अध्ययन है - कुछ आधुनिक विद्वान राजनीति विज्ञान को समस्याओं व संघर्ष का अध्ययन मानते हैं। ऐसे विचारों में डायक व ओडगार्ड के नाम उल्लेखनीय हैं। उनका मत है कि मूल्यों एवं साधनों की सीमितता के कारण उनके वितरण की समस्या उत्पन्न होती है तथा लोगों के बीच परस्पर तनाव व संघर्ष स्वाभाविक हो जाते हैं। राजनीति विज्ञान ऐसे संघर्ष का ही नाम है। यह विचारक संघर्ष को ही रानजीति विज्ञान का अंग मानते हैं क्योंकि वह यह मानते हैं कि सभी राजनीतिक संघर्ष राजनीतिक नहीं होते।
  4. राजनीति विज्ञान सार्वजनिक सहमति व सामान्य अभिमत का अध्ययन है - राजनीति विज्ञान को सार्वजनिक सहमति व सामान्य अभिमत का अध्ययन कहने वालों में बेनफील्ड का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ऐसे विद्वानों का मत है कि राजनीति विज्ञान लोगों के बीच साधनों / मूल्यों के लिए संघर्ष न होकर सामान्य हितों की प्राप्ति के लिए सार्वजनिक सहमति का नाम है। उनका मत है कि संघर्ष व तनावों को परस्पर समझौतों व परस्पर वार्ता द्वारा समाप्त किया जा सकता है। अतः राजनीति विज्ञान सहमति व अभिमति का नाम है। बेनफील्ड के शब्दों में, “किसी समस्या को संघर्षमय करने अथवा सुलझाने वाली गतिविधियाँ, जैसे- समझौता वार्ता, विचार-विनिमय, शक्ति प्रयोग आदि सभी राजनीति के अंग होते हैं।
  5. विविध विषय क्षेत्र - राजनीति विज्ञान के अनेक आधुनिक विद्वानों ने राजनीति विज्ञान में अनेक विविध विषयों को उसके विषय क्षेत्र में सम्मिलित किया है। वह राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था को राजनीति विज्ञान का विषय मानते हैं। कुछ अन्य विद्वान राजनीतिक संस्कृति, समाजीकरण, राजनीतिक-आर्थिक विकास आदि को आधुनिक राजनीति विज्ञान का अंग मानते हैं। राजनीतिक संचार को कुछ अन्य विद्वानों ने राजनीति विज्ञान का अंग कहा है, जबकि दूसरों ने राजनीतिक संस्थागत संचार व राजनीति को आधुनिक राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु में सम्मिलित किया है।

राजनीति विज्ञान तथा राजनीतिक दर्शन

कुछ लेखक राजनीति विज्ञान के स्थान पर 'राजनीतिक दर्शन' शब्द का प्रयोग करते हैं। वे इस शब्द के पक्ष में निम्नांकित तर्क प्रस्तुत करते हैं-
  1. विद्वानों का तर्क है कि राजनीति विज्ञान की प्रकृति सैद्धान्तिक, दार्शनिक एवं व्यावहारिक है। इसके अन्तर्गत हम राज्य की उत्पत्ति, विकास, प्रकृति, उद्देश्य, व्यक्तियों के अधिकार तथा कर्तव्य एवं राजनीतिक धारणाओं का अध्ययन करते हैं। राज्य सम्बन्धी अध्ययन का मुख्य भाग ये सिद्धान्त ही हैं, इसीलिए इसे राजनीतिक दर्शन' कहना अधिक उपयुक्त है।
  2. राजनीतिक दर्शन राजनीति विज्ञान का पूर्वगामी है। इसके अधिकांश सिद्धान्त राजनीतिक दर्शन से ही लिये गये हैं। गिलक्राइस्ट के शब्दों में, “राजनीतिक दर्शन एक दृष्टि से राजनीति विज्ञान का पूर्वगामी है क्योंकि प्रथम (राजनीतिक दर्शन) की मौलिक मान्यताओं पर ही द्वितीय (राजनीतिक दर्शन) आधारित है। साथ ही राजनीतिक दर्शन को भी स्वयं बहुत-सी ऐसी सामग्री का प्रयोग करना पड़ता है जो उसे राजनीति विज्ञान से प्राप्त होती है। "
  3. 'दर्शन एक प्रतिष्ठित शब्द है। वह विषय, जो स्थानीय तथा शाश्वत महत्व के विषयों से सम्बन्धित है, अत: उसे 'राजनीतिक दर्शन' जैसा सम्मानजनक नाम ही दिया जाना चाहिए। नामकरण पर आपत्तियाँ (Objections on Terminology)
विद्वानों द्वारा इस नामकरण के सन्दर्भ में निम्नांकित आपत्तियाँ प्रस्तुत की गयी हैं-
  • अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से (According to Study Scope)- 'राजनीतिक दर्शन' के अन्तर्गत विषय का सम्पूर्ण सैद्धान्तिक अध्ययन ही आता है, व्यावहारिक राजनीति का अध्ययन नहीं आता, जबकि सैद्धान्तिक राजनीति के साथ व्यावहारिक राजनीति का अध्ययन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। जे. एल. हैलोवेल के मतानुसार, ,"राजनीतिक दर्शन का सम्बन्ध राजनीतिक संस्थाओं में निहित विचारों और आकांक्षाओं से है। इस कारण राजनीतिक दर्शन विषय का अपूर्ण अध्ययन ही है।"
  • प्रकृति की दृष्टि से (According to Nature Point) - 'राजनीतिक दर्शन' शब्द के प्रयोग से ऐसा लगता है जैसे यह विषय एक कला ही है, विज्ञान नहीं। अतः 'राजनीतिक दर्शन' शब्द विषय की प्रकृति के अनुकूल नहीं है।
  • 'दर्शन' शब्द अनिश्चितताओं और अवास्तविकताओं का प्रतीक (Philosophy is the Symbol of Uncertainty and Unreality) - आधुनिक युग में 'दर्शन' शब्द अनिश्चितताओं और अवास्तविकताओं का प्रतीक बन गया है। 'राजनीतिक दर्शन' शब्द के प्रयोग से आशय यह होगा कि इस विषय में राज्य की समस्याओं पर कल्पना के आधार पर विचार किया जाता है जो वास्तविकता से दूर रहती हैं। अत: विषय के लिए 'राजनीतिक दर्शन' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

राजनीति विज्ञान के अध्ययन की उपयोगिता अथवा महत्व

राजनीतिक विचारक अरस्तू ने मानव जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजनीति विज्ञान के अध्ययन को सबसे अधिक उपयोगी माना है और राजनीति विज्ञान को 'सर्वोच्च विज्ञान' नाम दिया है। आधुनिक युग में राजनीति विज्ञान के अध्ययन की उपयोगिता बहुत अधिक बढ़ गयी है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन की उपयोगिता का विवेचन निम्नानुसार प्रस्तुत है-
  1. मानव अधिकार एवं कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Human Rights and Duties)— राजनीति विज्ञान के अध्ययन से व्यक्ति मानवीय अधिकारों का ज्ञान प्राप्त कर अपने व्यक्तित्व का सर्वोच्च विकास कर सकते हैं तथा कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त कर समाज एवं राज्य की उन्नति में योगदान दे सकते हैं। राजनीति विज्ञान मानव को उसके अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान कराता है जिससे मनुष्य समाज की श्रेष्ठतम इकाई के रूप में जीवन व्यतीत कर सके। इसके साथ ही राजनीति विज्ञान व्यक्तियों में परस्पर उचित सम्बन्ध स्थापित करके संघर्ष के स्थान पर सहयोग के सिद्धान्तों को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान का अध्ययन व्यक्ति और समाज दोनों के लिए ही उपयोगी है।
  2. राष्ट्रीय एवं संवैधानिक इतिहास का ज्ञान (Knowledge of National and Constitutional History ) - राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत विभिन्न देशों के राष्ट्रीय एवं संवैधानिक इतिहास का अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी राजनीति विज्ञान का अध्ययन करके अपने देश के प्राचीन गौरव और सफलताओं का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जैसे- भारतीय राजनीति का विद्यार्थी अपने देश के राष्ट्रीय इतिहास का अध्ययन करके यह मालूम कर सकता है कि उसके देश को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए कितने बलिदान और त्याग करने पड़ थे। इससे उसमें देशभक्ति और स्वन्तत्रता की रक्षा करने की भावना बलवती होती है।
  3. राज्य एवं सरकार का ज्ञान (Knowledge of State and Government) - राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत प्रचलित राज्य की उत्पत्ति, उद्देश्य, संगठन, कार्य-क्षेत्र तथा शासन के प्रकार एवं व्यवस्था के सम्बन्ध में विभिन्न विचारधाराओं का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि आधुनिक युग में कौन-सी विचारधारा देश की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप सर्वाधिक उपयुक्त होगी तथा सरकार का संगठन किस प्रकार किया जाना चाहिए। इस प्रकार राजनीति विज्ञान का अध्ययन हमें राज्य और सरकार का ज्ञान कराकर राजनीतिक व्यवस्था का सतर्क प्रहरी बनने के लिए प्रेरित करता है।
  4. उत्तम प्रशासनिक कला का ज्ञान (Knowledge of Best Administrative Art) - राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत प्रशासन को कुशल और जनहितकारी बनाने के लिए सरकारी कर्मचारियों के चयन और प्रशिक्षण आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। वर्तमान में राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत उत्तम प्रशासन तथा प्रशासन को जनता के प्रति अधिक-से-अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए उपायों पर विचार किया जा रहा है।
  5. मानवीय दृष्टिकोण को उदार बनाना (To make Liberal Human View ) - आधुनिक युग में वैज्ञानिक प्रगति के कारण सम्पूर्ण विश्व ने एक इकाई का रूप धारण कर लिया है और समस्त विश्व के मनुष्य एक-दूसरे के बहुत निकट आ गये हैं। राजनीति विज्ञान हमें अपने और विश्व के दूसरे देशों का ज्ञान प्रदान कर हमारे दृष्टिकोण को व्यापक और उदार बनाता है। राजनीति विज्ञान हमें परिवार, जाति, गाँव और नगर के अतिरिक्त राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार करने की क्षमता प्रदान करता है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व राज्य के निर्माण के लिए निरन्तर प्रयासरत है।
  6. राजनीतिक चेतना का विकास (Development of Political Consciousness) - राजनीति विज्ञान नागरिकों में राजनीतिक चेतना जाग्रत करता है। राजनीतिक चेतना के अभाव में नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन उचित रूप में नहीं कर पाते हैं और नेता तथा प्रशासक पथ-भ्रष्ट हो सकते हैं। राजनीति विज्ञान के ज्ञान से सम्पन्न राजनीतिक चेतना युक्त जनता शासकों को भ्रष्ट होने से रोकती है तथा सरकार की गलत नीतियों की आलोचना कर शासन को जनहितकारी बनाने का यथासम्भव प्रयास करती है। राजनीतिक दृष्टि से जागरूक जनता ही बाह्य आक्रमण तथा आन्तरिक संकटों का सामना कर सकती है।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का ज्ञान (Knowledge of International Problems) - आधुनिक युग में वैज्ञानिक प्रगति के कारण विश्व का आकार बहुत छोटा हो गया है जिससे राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों और समस्याओं का अध्ययन बहुत उपयोगी हो गया है। राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत साम्राज्यवाद, पूँजीवाद, साम्यवाद, निःशस्त्रीकरण व संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विषयों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन के आधार पर ही हम वैदेशिक नीति और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार कर सकते हैं। इस दृष्टि से राजनीति विज्ञान का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी है।

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